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________________ ( ६३ ) मागधी भाषा में 'क्ष' के स्थान में जिह्वामूलीय 'अक्षर बोला जाता है । सं० यक्ष राक्षस 'क' २ को 'ख' 'स्क' को 'ख' 'स्क' को 'क्ल' मा० य - क ल कश रक्खस निष्क - निक्ख । पुष्कर - पोक्खर । पुष्करिणी - पोक्खरिणी । शुष्क - सुक्ख । स्कन्द - खंद | स्कन्ध-खंध | स्कन्धावार- खंधावार । अवस्कन्द- अवक्खंद । Jain Education International प्रस्कन्देत् - पक्खंदे | उपस्कर - उवक्खर । उपस्कृत-उवक्खड । ( पालि भाषा में होता है । देखिए - अवस्कर - वक्र याने पुरीष = विष्ठा । 'क' को 'क्ख', 'स्क' को 'ख' तथा 'क्ख' प्र० पृ० ३६, ३७ । ) - पा० मागधी भाषा में जहाँ-जहाँ संयुक्त 'ष' अथवा 'स' श्राता है वहाँ सर्वत्र 'स' ही बोला जाता है । संयुक्त 'ष' सं उष्मा धनुष्खण्ड कष्ठ निष्फल विणु शष्प शुष्क १. हे० प्रा० व्या० ८।४।२६६ । प्रा० जक्ख ३. हे० प्रा० व्या० ८ | ४|२८६ | मा० उस्मा धनुरखंड कस्ट निस्फल विस्नु शस्प शुक २. हे० प्रा० व्या० ८|२|४ | я то उम्हा | धक्खंड | कह । निष्फल । विहु | सप्फ । सुक्क । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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