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अग्रत:-अग्गतो' । अद्यत:-अजतो । अन्ततः-अंततो। श्रादितःश्रादितो। इतः-इतो। इतः इतः-इदो इदो (शौर०)। कुतःकुतो। कुदो ( शौर०)। ततः-ततो। तदो। तदो तदो। पुरतःपुरतो । पृष्ठतः-पितो । मार्गत:-मग्गतो । सर्वत:-सव्वतो।
__ नाम के रूप जिनः-जिणो । देवः-देवो । भवतः-भवतो। भवन्तः-भवन्तो । भगवन्तः-भगवन्तो । रामः-रामो । सन्तः-संतो इत्यादि ।
'ख' विधान यह बात विशेष ध्यान में रखनी चाहिए कि यहाँ जो जो विधान किये जा रहे हैं उन सब में एक अक्षर के-असंयुक्त अक्षर के-विधान (जैसे ख, च, छ इत्यादि के विधान) शब्द के आदि में अर्थात् शब्द के प्रारम्भ में किये गये हैं और दोहरे (डबल) अक्षर के सभी विधान(जैसे क्ख, ग, ञ्च, च्छ इत्यादि के विधान) शब्द के अन्दर किये गये हैं ऐसा समझना चाहिए । 'क्ष' को 'ख' क्षण-खण (= समय का छोटा भाग)। क्षमा
खमा (= क्षमा याने सहन करना)। क्षय-खत्र। क्षीण-खीण । क्षीर-खीर। वेटक-खेड ।
वोटक-खोड। 'क्ष' को 'क्ख' इक्षु-इक्खु । ऋक्ष-रिक्ख । मक्षिका-मक्खियां ।
लक्षण-लक्खण । १. पृ० ३३ नियम ( ख ) के अनुसार अग्गो , तो, सव्वो ऐसे भी रूप होते हैं । २. पृ० ३४-शौरसेनी भाषा में 'त' का 'द' होता है-इस नियम से अग्गदा, तदो, सव्वदो, पुरदो ऐसे भी रूप होते हैं। ३. हे० प्रा० व्या बारा३ ।
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