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( ५७ )
पूर्ववर्ती 'ग' का लोप दुग्ध-दुध- दुध्ध - दुद्ध |
मुग्ध - मुध - मुध्ध मुद्ध ।
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षट्पद - छपत्र - छप्पन |
कट्फल-कफल- कफ्फल, कप्फल ।
खड्ग - खग-खग्ग । षड्ज-सज-सज्ज ।
उपल - उप्पल ।
उत्पल
उत्पाद - उपान - उप्पा
मुद्गर - मुगर - मुग्गर । मुद्ग-मुग- मुग्ग ।
गुप्त- गुत-गुत्त । सुप्त - सुत - सुत्त ।
निश्चल - निचल, निञ्चल - ( पालि - निश्चल ) । श्मशान - मसाण । श्च्योतति - चुश्रइ |
। धात्री धारी' |
श्मश्रु- मस्सु ।
निष्ठुर - निठुर- निठठुर-निठुर ।
शुष्क-सुक-सुक्क । षष्ठ-छठ-छः-छठ । निस्पृह - निपह - निप्पह । स्तव - तव । स्नेह - नेह | स्कन्द - कंद |
( पालि भाषा में भी संयुक्त व्यंजन के पूर्ववर्ती क्, ग् श्रादि व्यंजनों का लोप होता है तथा उनका द्वित्व वगैरह भी प्राकृत भाषा के अनुसार होता है देखिए - पा० प्र० पृ० ४१, २४ (नियम ३० ), २५ (नि० ३१), ३८,५१, २६ (नि० ३२), ३७, ३५, ३६, २८ । और पालि भाषा में श्मश्रु- मस्सु । शुष्क - सुक्ख । स्कन्द - खंद तथा खंध ऐसे प्रयोग होते हैं ) |
परवर्ती व्यञ्जन का लोप
संयुक्त व्यञ्जन के परवर्ती 'म्', 'न्', और 'यू' का लोप हो जाता
१. हे० प्रा० व्या० ८ २२८१ ।
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