SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( पालि में ६३ - श = छ ) २३. २४. २५. २६. 'श' को 'ह' भी 'श' को 'छ' होता है । देखिए - ना० प्र० पृ० 'ष' को 'छ' 'ष' को 'ह' 'ष' को 'ह' 'स' को 'छ' 'स' को 'ह' ( ५४ ) शिरा - किरा, सिरा ( यह शब्द पैशाची भाषा में भी बोला जाता है | ) 'ह' को 'र' प्रत्यूष - पच्चूह, पच्चूस । २'स' का परिवर्तन सप्तपर्ण - छत्तिवण्णो । सुधा-हा । दिवस-दिवह, दिग्रह, दिवस | 'ह' का परिवर्तन उत्साह - उत्थार, उच्छाह । स्वर सहित व्यञ्जनों का लोप ( यह नियम पैशाची भाषा में भी लगता है । ) 'क' तथा 'का' का लोप व्याकरण-वारण, बायरण | प्राकार-पार, पायार । Jain Education International दश - दह, दस । एकादश- एश्रारह, एत्रारस । दशबल - दहबल, दसबल । 'घ' का परिवर्तन षट्-छ । षट्पद-पत्र | षष्ठ-छह स्नुषा - सुरहा, सुसा। पाषाण- पाहाण, पासाण । १. हे० प्रा० व्या० ८ १ २६५, २६१, २६२ तथा ८ २ १४ । २. हे० प्रा० व्या० ८ १/२६५, २६३ | ३. हे० प्रा० व्या० ८२४८ । ४. हे० प्रा० व्या०८।१।२६७, २६८, २६६, २७०, २७१ । शब्दान्तर्गत सस्वर व्यंजन के लोप करने की प्रक्रिया यास्कने स्वीकृत की है तथा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy