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________________ ( ४७ ) ''को'' पताका-पडाया प्रति-पडि (पालि पटि ) प्रतिमा-पडिमा प्रतिपत्-पडिवया (पडिवा-तिथि ) प्रतिहार-पडिहार प्रभृति-पहुडि । प्राभृत-पाहुड। बिभीतक–बहेडश्र । मृतक-मड। व्यापृत-वावड। सूत्रकृत-सुत्तगड । श्रुतकृत-सुअगड । हरीतकी-हरडई । अपहृत-अोहड, श्रोहय। अवहृत-अवहड, अवहय । श्राहृत-पाहड, श्राहय । कृत-कड, कय । दुष्कृत-दुक्कड, दुक्कय । मृत-मह, मय । वेतस-वेडिस, वेअस । सुकृत-सुकड, सुकय । हृत-हड, हय । 'त' को 'ण' अतिमुक्तक-श्रणिउतय । गर्मित-गब्भिण । 'त' को 'र' सप्तति-सत्तर। 'त' को 'ल' अतसी-अलसी । सातवाहन-सालाहण । सं० सालवाहन । सातवाहनी-सालाहणी । पलित-पलिल, पलिश्र । 'त' को 'व' अातोद्य-श्रावज्ज, अाउज्ज पीतल-पीवल, पीप्रल 'त' को 'ह' वितस्ति-विहत्यि (पालि भाषा में विदत्थि' होता है । देखिये-पा० प्र० पृ०५६-त-द) कातर काहल, कायर भरत भरह, भरय मातुलिंग-माहुलिंग, माउलिङ्ग वसति-वसहि, वसई : जिन शब्दों में 'प्रति' लगा हो उन सभी शब्दों में यह नियम लगता है । जैसे :-प्रतिपत्ति-पडिवत्ति श्रादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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