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। सं०
यर
पायाल
गया
प्रजा
( ३७ )
मध्यम व्यञ्जन को य जिसके पूर्व में और अन्त में 'अ' तथा 'या' हो ऐसे 'क','ग','च','ज' आदि के' लोप हो जाने पर शेष बचे 'अ' को 'य' और 'श्रा' को 'या' होता है। जैसे :सं० प्रा०
प्रा० तीर्थकर
पाताल नगर नयर
गदा कचग्रह कयग्गह नयन
नयण पया
। लावण्य लायएण (पालि भाषा में 'क' और 'ज' को भी 'य' होता है । देखिएपा० प्र० पृ० ५६, ५७-क = य, तथा ज = य ) ४. दो स्वरों के बीच में श्राए हुए 'ख', 'घ', 'थ', 'ध' तथा 'भ' को 'ह' होता है। जैसे :मुख-मुह, मेघ-मेह, कथा-कहा, साधु-साहु, सभा-सहा।
अपवाद शौरसेनी भाषा में 'थ' को 'ह' होता है और कहीं 'ध' भी होता है तथा 'ह' को कहीं 'ध' होता है।४।
शौ०
प्रा० नाध, नाह नाह राजपथ
राजपध, राजपह राजपह
सं०
नाथ
( पालि भाषा में 'घ', 'ध' और 'भ' को 'ह' होता है। देखियेपा० प्र० पृ० ५६-घःह, पृ० ६०-ध-ह, पृ० ६२-भह)
१. देखिए-पृ० ३३ लोप (ख)। २. हे० प्रा० व्या०८११८० ३. हे० प्रा० व्या०८/११८७। ४. हे० प्रा० व्या०८/४/२६७ तथा २६८
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