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किरि
( ३६ ) आए हुए वर्गीय तृतीय व्यंजन का प्रथम व्यंजन और चतुर्थ व्यंजन का द्वितीय व्यंजन नहीं होता तथा युज् धातु के 'ज' को भी 'च' नहीं होता। सं० पै० चू० पै० हेमचन्द्र चू० पै० प्रा० गति गति गति कति
गह गिरि . गिरि गिरि
गिरि जीमूत जीमूत जीमूत चीमूत
जीमूत्र ढक्का ढक्का ढका
ढक्का बालक बालक बालक पालक
बालन नियोजित नियोजित नियोजित नियोचित नियोजिश्र
(पालि भाषा में 'ग' को 'क' तथा 'ज' को 'च' होता है। देखिये-पा० प्र० पृ० ५५,५७-गक तथा ज= च ) अपभ्रंश भाषा में किसी-किसी प्रयोग में 'क' को 'ग' होता है ।२
संस्कृत अपभ्रंश प्राकृत विक्षोभकर विच्छोहगर विच्छोहयर
ठक्का
अन्तिम व्यञ्जन को अ कुछ शब्दों में अन्त्य-उपञ्जन को 'अ' होता है । सं०
प्रा०
सरश्र भिषक
मिसन (पालि भिसक्क) १. हे० प्रा० व्या०८।४।३२७। २. हे० प्रा० व्या० ८।४।३६६। ३. हे० प्रा० व्या०८/१।१८।
शरत्
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