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________________ ( ३६८ ) अट्ठणवइ, अडणवइ (अष्टनवति) = अट्ठानबे । ण न)वरणवइ (नवनवति) = निन्यानबे एगूणसय ‘एकोनशत) सय (शत) = एक सौ दुसय (द्विशत) = दो सौ तिसय (त्रिशत) तीन सौ बे सयाई (द्व शते ) = दो सौ तिरिण सयाई (त्रीणि शतानि) = तीन सौ चत्तारि सयाई (चत्वारि शतानि) = चार सौ सहस्स . सहस्र) = हजार बे सहस्साई (द्वसहस्र) = दो हजार तिएणि सहस्साई (त्रोणि सहस्राणि) = तीन हजार चत्तारि सहस्साई (चत्वारिसहस्रारिण) = चार हजार दह सहस्स (दश सहस्र) = दस हजार अयुअ, अयुत (अयुत) = अयुत, दस हजार लक्ख (लक्ष) = लाख दस लक्ख, दह लक्ख (दशलक्ष) = दस लाख पउप्र, पउत, पयुम (प्रयुत) = प्रयुत, दस लाख कोडि (कोटि) = कोटि, करोड़ कोडाकोडि (कोटाकोटि) = काटोकोटि, करोड़ को करोड़ से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह । उपर्युक्त सभी शब्द सामान्यतः एकवचन में प्रयुक्त' होते हैं उनके उपयोग को दो रोतियाँ इस प्रकार है :-जब 'बीस मनुष्य ऐसा कहना होता है तब 'बोसं मणुस्सा' अथवा 'वोसा मणुस्साणं' अर्थात् 'बीस मनुष्य', 'मनुष्यों को बोस संख्या' इस प्रकार इसके दो प्रकार के प्रयोग होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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