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________________ ( ३६७ ) चोसत्तरि, चउसत्तरि ( चतुस्सप्तति) = चौहत्तर, चोहत्तर पण सत्तरि, परणसत्तरि ( पञ्चसप्तति) = पचहत्तर छसत्तरि ( षट्सप्तति) = बेहत्तर, छिहत्तर सत्तसत्तरि (सप्तसप्तति) = सतहत्तर अट्ठसत्तरि, अडत्तरि ( श्रष्टसप्तति) = अठहत्तर एगूणासी ( एकोनाशीति) = उन्नासी असीर (अशीति) = अस्सी एगासीइ (एकाशीति) = इक्यासी बासी इ ( द्वयाशीति) = बयासी तेसीइ तेरासीइ } (त्र्यशीति) = तिरासी चउरासीइ, चोरासीइ ( चतुरशीति) = चौरासी पण सीइ, पञ्चासीइ ( पञ्चाशीति) = पचासी छासीइ (षडशीति) = छियासी सत्तासीर ( सप्ताशीति) = सत्तासी अट्ठासी ( श्रष्टाशीति) = अट्ठासी नवासीइ ( नवाशीति) = नवासी एगुणनवइ ( एकोननवति) = नवासी नवइ, एवइ ( नवति ) = नब्बे एगणवइ, इगणवइ (एकनवति) = इक्यानबे बाणवइ द्विनवति) = बानवे तेवइ ( त्रिनवति) = तिरानबे चउणवइ, चोणवइ (चतुर्नवति) = चौरानबे पंचवइ, पण्णणवइ ( पञ्चनवति) = पंचानबे छण्णव (षण्णवति) = छियानबे सत्त (ता, वइ (सप्तनवति) = सत्तानवे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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