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( ३५७ )
माणभण् = माण-भणमाणो, भणेमाणो (भणमानः) = पढ़ता हुआ।
भणमाणं, भरणेमाणं (भणमानम्) = पढ़ता हुआ । भणमापी, भणेमाणी (भणमांना) = पढ़ती हुई।
भणमाणा, भरणेमाणा हो + अ + माण-होप्रमाणो, होएमाणो, (भवमानः)= होता हुआ ।
होमाणो. होप्रमाणं, होएमाणं, (भवमानम्। =होता हुआ।
होमाणं होप्रमाणी, होएमापी) होप्रमाणा, होएमाणा : (भवमाना) = होती हुई। होमाणी, होमाणा )
ई
भए + ई-भणई, भणेई (भणन्ती) = पढ़ती हुई।
हो + प्र-ई-होमई, होएई,होई (भवन्ती) होती हुई। ... इसी प्रकार कर्तरि प्रेरक अंग, सामान्य भावे अंग, सामान्य कर्मणि अंग तथा प्रेरक भावे और कर्मणि अंग को उक्त तीनों प्रत्ययों में से एक लगाने से उसके वर्तमान कृदन्त बनते हैं। कर्तरि प्रेरक वर्तमान कृदन्त.. करावि + अ+ न्त-करावंतो, करावेतो (कारापयन्) = करवाता हुआ।
कार + न्त-कारंतो, कारेंतो (कारयन्) = करावि + क + माण-करावमाणो, करावेमापो (कारापयमाणः), कार + मारण-कारमाणो, कारेमाणो (कार्यमाणः) . , .
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