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________________ ( ३४२ ) • कासव ( काश्यप) = कश्यप गोत्र का ऋषि-ऋषभदेव अथवा महावीर स्वामी। कविल ( कपिल ) = कपिल ऋषि। वाक्य (हिन्दी) केवट से सरोवर तिरा जाता है। पिता द्वारा प्रह्लाद बाँधा जाता है । कश्यप द्वारा चण्डाल स्पर्श किया जाता है । राजा द्वारा कीति इकट्ठी की जाती है। कपिल द्वारा तत्त्व कहा जाता है। ऋषभदेव द्वारा धर्म कहा जाता है। सर्वज्ञ द्वारा क्लेश जीते जाते हैं । उसके द्वारा शास्त्र सुनाया जाता है। जिसके द्वारा बकरा होमा जाता है उसके द्वारा धर्म नही जाना जाता। वाक्य (प्राकृत) निवेण सत्तुणो जिब्वंति । गोवालेण गउओ दुब्भते । भारवहेहिं भारो वुब्भए । दायारेण दाणेण पुण्णाइ लब्भंते। मुणिणा संजमो धप्पते । मालाआरेण जलेण उज्जाणाणि सिप्पते । कसिबलेण तणाई लूव्वंति । सोयारेहि मत्थयाई घुम्वंते । वद्धमाणेण मम घरं पुन्वते । बालेण गामो गम्मइ । बालेहि हस्सइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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