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________________ ( ३३२ ) कर्मसूचक अंग पा-पाईअ, पाइज्च । कड्ढ-कड्ढीअ, कढिडज्ज। दा-दाईअ, दाइज्ज । घड्-घडोय, घडिज्ज। झा-झाईअ, झाइज्ज । खा-खाइय, खाइज्ज । ला-लाईय, लाइज्ज । कह-कहोय, कहिज्ज। पढ्-पढीय, पढिज्ज । बोल्ल-बोलीय, बोल्लिज्ज । इस प्रकार धातुमात्र के भाववाची और कर्मवाची अंग बना लेने चाहिए और तैयार हुए इस अंग में वर्तमान आदि कालवाचक तथा पुरुषबोधक प्रत्यय लगाकर उसके रूप सिद्ध कर लें। वर्तमानकालिक भावप्रधान ( उदाहरण) बोहीअइ, बोहिज्जइ ( भीयते )। बीह + ईअ +इ=बीही-अइ, एइ, अए, एए । बीह + इज्ज + इ = बीही,-ज्जइ, ज्जेइ, ज्जए, ज्जेए । बीहीएज्ज, बोहीएज्जा । सर्वपुरुष-सर्ववचन में। बीहिज्जेज्ज, बीहिज्जेज्जा भावप्रधान प्रयोगों में भाव-क्रिया ही मुख्य होती है। प्रथम अथवा द्वितीय पुरुष का प्रयोग इसमें सम्भव नहीं है। इसी प्रकार दो-तीन अथवा इससे अधिक संख्या का प्रयोग भी इसमें नहीं होता। अतः साधारणतः भावेप्रयोग तीसरे पुरुष के एकवचन द्वारा व्यवहार में आता है। कर्मप्रधान भणीयइ, भणिज्जइ गंथो ( भण्यते ग्रन्थः )। भण् + ईअ + इ = भणो-अइ, एइ, अए, एए । भण् + इज्ज + इ = भणि-ज्जइ, उजए, ज्जेए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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