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यौवन
( १६ ) (पालि भाषा में भी 'ऐ' को 'ए' होता है । देखो, पा० प्र०पृ० ३-ऐ-ए) (१२)
औ को श्रो कौशाम्बी
कोसंबी
जोवण कौस्तुभ
कोत्थुह (पालि भाषा में भी 'श्री' को 'श्री' होता है। देखो, पा०प्र० पृ० ५-ौ-ओ)
अपभ्रंश प्राकृत भाषा में स्वरों का परिवर्तन व्यवस्थित रूप से नहीं होता। याने कहीं तो 'श्रा' को 'अ' होता है, कहीं 'ई' को 'ए' होता है, कहीं 'उ' को 'अ' तथा 'श्रा' होता है । 'ऋ' को 'अ', 'इ' तथा 'उ' होता है कहीं 'ऋ' भी रहती है। 'ल' को 'इ' तथा 'इलि' 'ए' को 'इ' तथा 'ई' और 'श्री' को 'श्रो' तथा 'अउ' होता है ।
'श्रा' को 'अ'-काच-कच्चु, काच्चु अथवा काच्च । 'ई' को 'ए'-वीणा-वेण, वीण, वीणा । 'उ' को 'अ' तथा 'श्रा'-बाहु, बाह, बाहा, बाहु । ऋ को 'अ', 'इ', 'उ'-पृष्ठी-पष्ठि, पिठि, पुछि,
___ तृण-तणु, तिणु, तृणु, .
सुकृत-सुकिदु, सुकिउ, सुकृदु । लू को 'इ', 'इलि'-क्लृन्न, किन्नउ, किलिन्नउ । ए को 'इ', 'ई',-लेखा । लिह, लोह, लेह ।
रेखा । श्रौ को 'प्रो' तथा 'अउ'-गौरी, गोरि, गउरि । १. हे० प्रा० व्या० ८।१।१७६; २. हे० प्रा० व्या० ८/४/३२६, ३३०. ।
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