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________________ (2) ऋद्धि ( ११ ) ऋक्ष सदृश ( १५ ) Jain Education International सदृक्ष सदृक् ऋण ऋषभ ( पालि भाषा में भी 'ऋ' को 'रि' होता है । देखो, पा० प्र० पृष्ठ ३ - ऋ =रि टिप्पण ) सदृश श्रादि शब्दों में दकार लोप करने के बाद जो 'ऋ' शेष रहती है उसको 'रि' होता है । क्लुन्न क्लुस ॠ को रि पैशाची भाषा में सरिस ( सदृश ) के बदले सतिस रूप बनता है । इसी प्रकार जारिस ( यादृश ) के बदले यातिस, अन्नारिस ( श्रन्यादृश ) के बदले अन्नातिस आदि रूप बनते हैं ( हे० प्रा० व्या० ८ | ४ | ३१७ | ) | ( १० ) शैल कैलास वैधव्य रिद्धि रिच्छ सरिस सरिक्ख सरि रिण - श्रण रिसह-उसह ल को इलि ऐ को ए किलिन्न किलिस सेल केलास वेहव्व १. हे० प्रा० व्या० ८ ११४०, १४१, १४२. । २. हे० प्रा० व्या० ८|१|१४५ | ; ३. हे० प्रा० व्या० ८|१| १४८| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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