SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २९१ ) लगने से पूर्व धातु के अंग अन्त्य 'अ' को 'आ' भी उपलब्ध होता है । जैसेसुण् + अ + उ = सुणाउ, सुणउ, सुणेउ । जिस धातु के अन्त में आ, इ वगैरह स्वर हों उसको इन्जसु, इज्जहि, और इज्जे प्रत्यय नहीं लगते । जैसेठा, री वगैरह धातु में ये प्रत्यय नहीं लगाते परन्तु जब विकरण 'अ' लगने से ठाअ, रीअ होगा तब उनमें ये प्रत्यय लगते हैं। 'हस' धातु के रूप एकवचन बहुवचन प्र०पु० हसमु, हसामु हसमो, हसामो हसिमु, हसेमु. हसिमो, हसेमो म०पु० हससु, हसेसु, हसेज्जसु हसह, हसेह हसाहि, हसहि, हसेज्जहि हसेज्जे, हस तृ०पु० हसउ, हसेउ हसंतु, हसेतु हसिंतु हसतु, हसेतु सर्वपुरुष-सर्ववचन । हसेज्ज, हसेज्जा ( ज्ज, ज्जा के लिए देखिए पाठ ३) १४वें पाठ में बताये हुए नियम के अनुसार प्रत्येक स्वरान्त धातु के विकरण वाले तथा बिना विकरण के अंग बनाने के लिए और तैयार हुए अंगों द्वारा प्रस्तुत विध्यर्थ तथा आज्ञार्थ के रूप साध लेना चाहिए। जैसे हो (विकरणरहित रूप ) एकवचन प्र०पु० होम होमो बहुवचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy