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________________ पन्द्रहवाँ पाठ ऋकारान्त शब्द ऋकारान्त शब्दों ( नामों) के दो प्रकार हैं। उनमें कुछ ऋकारान्त शब्द सम्बम्धसूचक विशेष्यरूप हैं तथा कुछ केवल विशेषणरूप हैं। सम्बन्धसूचक विशेष्यरूप-जामातृ, पितृ, भ्रातृ आदि । केवल विशेषणरूप-कर्तृ, दातृ, भर्तृ आदि । ऋकारान्त ( सम्बन्धसूचक-विशेष्यरूप) शब्द १. प्रथमा और द्वितीया के एकवचन को छोड़कर सब विभक्तियों में सम्बन्धसूचक विशेष्यरूप ऋकारान्त शब्द के अन्त्य 'ऋ' को विकल्प से 'उ' होता है ( देखिए, हे० प्रा० व्या० ८।३।४४।)। जैसे-पितृ = पितु, पिउ । जामात-जामातु, जामाउ । भ्रातृ = भातु, भाउ । . २. सम्बन्धसूचक विशेष्यरूप ऋकारान्त शब्द के अन्त्य 'ऋ' को सब विभक्तियों में 'अर' होता है ( देखिए, हे० प्रा० व्या० ८।३।४७ )। जैसे-पितृ = पितर, पियर । जामातृ = जामातर, जामायर । भ्रातृ = भातर, भायर । ३. केवल प्रथमा के एकवचन में उक्त शब्द के अन्त्य 'ऋ' को 'आ' विकल्प से होता है ( देखिए, हे० प्रा० व्या० ८।३।४८)। जैसे-पितृ = पिता, पिया। जामातृ = जामाता, जामाया । भ्रातृ-भाता, भाया। ४. केवल सम्बोधन के एकवचन में इन शब्दों ( नामों) के अन्त्य 'ऋ' को 'अ' और 'अरं' दोनों विकल्प से होते हैं। जैसे-पितृ = पित ! पितरं ! पितरो ! पितरा ! पिय ! पियरं ! पियरो ! पियरा ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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