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( २४३ ) घय (घृत ) - घी। तण ( तृण)= तृण, घास । मित्तत्तण ( मित्रत्व )= मित्रता, दोस्ती, भाई-बन्धुता ।
विशेषण
बुद्ध ( बुद्ध ) = बोध-ज्ञान पाया हुआ, ज्ञानी। हुत (हुत )= हवन किया हुआ। सेट्ठ ( श्रेष्ठ') = श्रेष्ठ, उत्तम। संभूअ ( संभूत ) = हुआ ! चउत्थ । (चतुर्थ ) = चतुर्थ, चौथा । चतुत्थ तिण्ण ( तीर्ण) = तोर्ण, तिरा हुआ। सुत्त ( सुप्त ) = सुप्त, सोया हुआ। अप्पणिय ( आत्मीय) = अपना । पासग ( दर्शक ) = द्रष्टा, समझदार, विचारक । परिसोसिय, परिसोसिअ ( परिशोषित ) = परिशोषित । विइज्ज (द्वितीय) = द्वितीय, दूसरा ।
अव्यय
ताव, ता ( तावत् ) = तब तक । एगया ( एकदा) = एकदा, एकबार । सया ( सदा ) = सदा, हमेशा।
१. उपयोग :-जिसमें श्रेष्ट कहना हो वह शब्द षष्ठी और सप्तमी
विभक्ति में आता है 'पाणीसु सेढे माणवे' अथवा 'पाणोण सेढे माणवे' याने प्राणियों में मनुष्य श्रेष्ठ है।
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