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________________ ( २२३ ) बंद + वंदीन ( वंद् + ईअ ) हस् + हसोअ ( हस् + ईअ ) कर् + करीअ ( कर् + ईअ ) विशेषतः आर्ष प्राकृत में उपलब्ध प्रत्यय : ( इष्ट' ) प्रायः तृतीय पुरुष त्था एकवचन इत्था इत्थ प्रायः तृतीय पुरुष ) इत्थ बहुवचन • इंसु अंसु प + हार् = पहारित्था पहारेत्था धातु-रूप हो होत्या ( हो + त्था ) रोइत्था ( री + इत्था ) री Jain Education International ( इष्ट ( इषुः ) } ( पहार + इत्था ) भुंज् - भुंजित्था ( भुंज् + इत्था ) वि + ह = विहरित्या ( विहर् + इत्था ) १. यह ' इत्थ' और संस्कृत का 'इष्ट' प्रत्यय दोनों समान हैं । इष्ट-इट्ठइत्थ, त्था, अभविष्ट, अजनिष्ट आदि संस्कृत रूपों में प्रयुक्त 'इष्ट' ( तृतीय पु० एकवचन ) भूतकाल का सूचक है । प्राकृत में भी प्रायः यह तृतीय पुरुष एकवचन को सूचित करता है । २. 'इंसु' और 'अंसु' तथा संस्कृत का भूतकाल दर्शक 'इषुः ' ये सभी समान हैं । 'अवादिषु :', 'अव्राजिषुः ' आदि संस्कृत क्रियापदों में प्रयुक्त 'इषु: ' ( तृ० पु० बहुव० ) भूतकाल का सूचक है और प्राकृत में भी प्रायः वह उसी काल, पुरुष और वचन को सूचित करता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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