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( २२२ ) व्यञ्जनांत धातुओं में लगनेवाले प्रत्यय :
एकवचन - बहुवचन प्र० पु० ईअ ( ईत्)
म० पु०
॥
तृ० पु०
॥
पालि में धातु के आदि में हियतनो, अज्जतनी में भूतकाल सूचक 'अ' का आगम होता है परन्तु प्राकृत में वैसा नहीं होता तथा पालि में परोक्ष भूतकाल में धातु का द्विर्भाव हो जाता है। प्राकृत में वैसा नहीं होता है। पालिरूपों का भूतकाल-संबंधी विशेषताओं के लिए देखिए, पा०प्र० पृ० २०२ तथा २१२ से ११६ तक। यहाँ बताए हुए पालि प्रत्यय तथा प्राकृत प्रत्यय-इन दोनों में विशेष तो नहीं परन्तु साधारण समानता जरूर देखी जाती है।
१. हे० प्रा० व्या० ८।३।१६२। सूत्र में प्रयुक्त भूतकाल का 'सी' और
संस्कृत में प्रयुक्त भूतकाल 'सीत्' प्रत्यय दोनों एक जैसे हैं । 'अधासीत्', 'अघ्रासीत्' आदि संस्कृत रूपों में प्रयुक्त 'सीत्' ( तृतीय पु० एकवचन ) भूतकाल को बताता है लेकिन प्राकृत में वह व्यापक होकर सर्वपुरुष और सर्ववचन बताता है । 'ही' और 'हीअ' ये दोनों प्रत्यय भी 'सी' के साथ ही समानता रखते हैं। हे० प्रा० व्या० ८।३।१६३। के अनुसार 'ईअ' और संस्कृत का .. भूतकाल सूचक 'इत्' दोनों हैं। 'अभाणीत्', 'अवादीत्' आदि संस्कृत क्रियापदों में प्रयुक्त 'ईत्' ( तृ० पु० एकवचन ) भूतकाल को बताता है परन्तु प्राकृत में वह सर्वपुरुष और सर्ववचनों में व्यापक हो जाता है।
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