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________________ च० ष० स० ( १९७ ) तस्स, तास ( तस्मै, तस्मै ) सिं, तास, तेसि, (तेभ्यः, ते) ताण, ताणं ताओ, ताउ ( ततः ) तो, ताओ, ताउ ( ततः ) तम्हा ( तस्मात् ) ताहि, तेहि, ताहितो, तेहितो ( तेभ्यः ) तासुतो, तेसुंतो जाओ, जाउ до चतुर्थी विभक्ति के समान होते हैं । तंसि तस्सि तहि , तमि ( तस्मिन् ) तत्थ ( तत्र ) 'ताहे, ताला, तइआ★ ( तदा ) सि, सि, हि " मि, णत्थ णाओ, गाउ नाहि, हि नाहितो, हितो णासुंतो, सुंतो त (नपुंसकलिंग ) तं ( तत् ) ताण, ताई, ताइँ ( तानि ) ८|३|७० तथा पा० प्र० पृ० १४१ । इसीलिए 'न' के साथ 'ण' के रूप भी बता दिए हैं । 'त' और 'न' तथा 'ण' लिखने में सर्वथा समान हैं इसलिये यह 'ण' तथा 'न' लिपिदोष के कारण कदाचित् प्रचलित हुए हों । ' त्यां' के स्थान में 'न्यां' का प्रयोग गुजराती गोहिलवाडी में प्रचलित ही है । १. ये तीनों रूप 'तब ' ( तदा ) अर्थ में ही प्रयुक्त होते हैं । * हे० प्रा० व्या० ८|३|६५| Jain Education International तेसु तेसुं ( तेषु ) सु, सुं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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