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द्वि०
तृ०
च०
9.
ष०
स०
प्र०
द्वि०
तृ०
( १६६ )
जं ( यम् )
जेण, जेणं (ग्रेन )
जस्स, जास ( यस्मै यस्मै ) जेसि जाण, जाणं
जम्हा ( यस्मात् )
जाओ, जाउ यतः >
जाओ, जाउ ( यतः )
जाहि, जेहि, जाहिन्तो, जेहितो, जातो, जेसुंतो ( येभ्यः ) के समान होंगे । जेसु, जेसुं ( येषु )
षष्ठी के रूप चतुर्थी विभक्ति
जंसि, जस्सि ( यस्मिन् )
जहि, जम्मि, जत्थ ( यत्र ) जाहे, जाला, जईआ★ ( यदा)
जे, जा ( यान् ) जेहि, जेहि, जेहिं (यै: )
ज (नपुंसकलिङ्ग)
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जं (यत्)
जाणि, जाई, जाइँ ( यानि )
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(,, ) शेष सभी रूप पुंल्लिंग 'ज' के समान चलते हैं ।
त, ण (तद्,
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हे० प्रा० व्या० ८।३।६५ ।
१. प्राकृत भाषा में 'त' और 'ण' तथा दोनों 'वह' ( ते ) के
( ये येभ्यः )
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स, सो, से (सः)
तं णं (तम् )
तेण, तेणं, तिणा ( तेन ) तेहि, तेहि, तेहिँ;
पुंल्लिङ्ग )
तेणे (ते)
ते, ता, णे णा ( तान् )
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हि, हि, हिँ (तैः )
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पालि भाषा में 'त' और 'न' अर्थ में प्रयुक्त होते हैं ( हे० प्रा० व्या०
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