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( १९० ) तृ• हाहाण
हाहाहि, हाहाहिं, हाहाहिं च०ष० हाहस्स, हाहे हाहाण, हाहाणं पं० हाहत्तो, हाहासो, हाहतो, हाहासो,
हाहाउ, हाहाहितो हाहाउ, हाहाहितो, हाहासुंतो स. हाहम्मि, हाहंसि हाहासु, हाहासुं संबो० हाहा
हाहा इसी प्रकार गोवा (गोपा), सोमवा (सोमपा),किलालवा (किलालपा) इत्यादि शब्दों के रूप होंगे।
'षड्भाषा चंद्रिका' नामक व्याकरण के नियमानुसार गोवा वगैरह शब्दः । लस्व हो जाते हैं अर्थात् गोव, सोमव, किलालव ऐसे हो जाते हैं तब इन सबके रूप अकारांत 'वीर' शब्द की तरह चलेंगे।
वाक्य (हिन्दी में ) घड़े में तालाब का पानी है। नट ढोल के साथ मार्ग में नाचते हैं । बालक कान्ति से शोभायमान होते हैं। जिन शील की स्तुति करते हैं। कुल्हाड़ी से चन्दन को काटता हूँ। गरुड़ का जोड़ा तालाब में है। बालक छींकते है। क्षेत्र में क्षार तत्व है इसलिए अंकूर जल जाते है। शब्दों का कोश बताता हूँ। कलह से वैर होता है। श्रमण मठ में रहते हैं। तुम खोर पीते हो। बैल जल का मोट खींचते हैं।
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