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________________ ( १८४ ) अव्यय न ( न ) = नहीं । व ( वा ) = वा, अथवा | विणा, विना ( विना ) विना । सया, सइ ( सदा ) = सदा, हमेशा । सह (सह ) = साथ | सद्धि ( सार्धम् ) = साथ | निच्चं, णिच्चं ( नित्यम् ) = नित्य | वाक्य ( हिन्दी में ) वैर से बैर बढ़ता है । नगर के पास चन्दन का वन है । सिंह अथवा बाघ से शृगाल डरता है । कुम्हार सर्दी में पात्र बनाता है । बाघ के सींग नहीं होते । अग्नि वन को जलाती है । ज्ञान में मंगल है | महावीर को मस्तक झुकाकर वन्दन करता हूँ । राजा के कान नहीं होते । सिंह के हृदय में भय नहीं है । वन में हाथी सूंढ़ से फल खाता है । मांस के लिए सिंह को मारते हो । दांतो के लिए हाथियों को मारते हैं । बुद्ध के साथ महावीर बोलते हैं । चमड़े के लिए बाघ को मारता है । हाथी बैलों से नहीं डरते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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