SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७६ ) वाक्य (हिन्दी में) बादल मार्ग को सींचते हैं। इन्द्र बुद्धदेव को नमस्कार करता है । बुद्धिमान् पुरुष बालक को पूछता है । आँख से चन्द्र को देखता हूँ। कान से समुद्र को सुनता हूँ। बालक के हाथ में चन्द्र है। कलह को छिन्न कर ( मिटा) दो। सूर्य तपता है। राजा मार्ग को जानता है। सिद्धों को नमस्कार करो। मजदूर लोग मार्ग पर दौड़ते हैं। हम समुद्र में चन्द्र को देखते हैं । बालक उपाध्याय को पूछते हैं । राजा के चरणों में पड़ता हूँ। वीतराग देव ! नमस्कार करता हूँ। दो बालक बोलते हैं। समुद्र गरजते हैं। राजा सुशोभित होता है। वाक्य (प्राकृत में) नमो अरिहन्ताणं । भारवहो हरं वंदइ। महावीरो जिणो झाअइ । १. णमो' अथवा 'नमो' के साथ प्रयुक्त शब्द षष्ठी विभक्ति में आते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy