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अप
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उवसग्ग ( उपसर्ग उपसर्ग धातु के पूर्व में आकर धातु के मूल अर्थ में न्यूनाधिकता करके विशेष, न्यून, अधिक अथवा भिन्नार्थ बताते हैं । जो इस प्रकार हैं :प (प्र) = आगे, +जाइ पजाइ आगे जाता है।
प+जोतते प्रजोतते विशेष प्रकाशित होता है।
+हरति पहरति प्रहार करता है। परा-सामने, उल्टा, परा + जिणइ पराजिणइ पराजय करता है । ओ ) (अप)-हल्का , ओ+ सरइ अव रहित, नीचे,दूर, अव+ सरइ सरकता है,
अप + सरइ ) दूर हटता है । अप+ अर्थकम् = अवत्थयं-अपार्थक,
व्यर्थ । ओ + माल्यम् = ओमल्लं = निर्माल्य । सं (सम)-इकट्टा, साथ, सं+ गच्छति = संगच्छति = साथ
जाता है। सं+ चिणइ = संचिणइ = संचय
करता है, इकट्ठा करता है। अनु (अनु)-पीछे, समान, अणु + जाइ = अणुजाइ = पीछे
जाता है। अणु , , ,
अणु + करइ- अणुकरइ = अनु
करण करता है। ओ (अव)-नीचे
ओ+ तरह = ओतरइ अवतार लेता है। अव + तरइअवतरइ उतरता है, नीचे जाता है।
अव
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