________________
( १४२ ) ठीक इसी प्रकार शौरसेनी, मागधी तथा अपभ्रंश के रूप भी बना लेने चाहिए। उस भाषा के प्रत्यय तथा रूप के कुछ उदाहरण टिप्पण में भी दिये गये हैं।
भाषान्तर वाक्य वन्दना करता हूँ।
वह घिसता है। धसता हूँ।
वह जानता है। करता हूँ।
वह गिरता है। तू वन्दना करता है।
तू खींचता है। तू जीमता (भोजन करता) है। तू बरसता है। तू हर्ष करता है।
भोजन करता है। वह देखता है।
वह विचार करता है। वह करता है।
वह पूर्ण करता है। वह सहता है।
तू उतावला करता है। मैं घिसता हूँ।
तू निन्दा करता है। मैं गिरता हूँ।
तू पूजता है। मैं पूछता हूँ।
मैं सहता हूँ। मैं करता हूँ। मैं गिरता हूँ 'वंदामि
करते करिससे
जाणेसि हरिसमि
करिससि वरिसति
पूरह प्रथमपुरुष के एकवचन में 'वंदे' रूप भी प्रयोग में आता है। वन्द अ + ए = वंदे। ( संस्कृत में वंदे-मैं वन्दना करता हूँ ) "उसभं अजिअंच वंदे"।
-चतुर्विंशतिस्तव सूत्र गाथा २
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org