SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४१ ) नियम १. मि, ति, न्ति आदि प्रत्ययों को लगाने के पूर्व मूल धातुओं के अन्त में विकरण 'अ' का प्रयोग होता है। जैसेःवन्द् + ति-वन्द् + अ + ति =वंदति ।। पुच्छ् + ति-पुच्छ् + अ + ति = पुच्छति । २. प्रथमपुरुष के मकारादि प्रत्ययों के पूर्व आनेवाले 'अ' विकरण का विकल्प से 'आ' होता है। जैसेःवंद् + अ + मि= वंदामि, वंदमि । पड़ + अ + मि = पडामि, पडमि । ३. पुरुषबोधक प्रत्यय लगाने के बाद धातु के अंग 'अ' का विकल्प से 'ए' हो जाता है। जैसे:वंद् + अ + इ = वंदेइ, वंदइ, वन्दए, वन्देए। जाण् + अ + सि = जाणेसि, जाणसि, जाणसे, जणेसे । पुच्छ् + अ + मि = पुच्छेमि, पुच्छामि, पुच्छमि । रूपाख्यान १. देवखमि देक्खामि देवखेमि । २. 'देक्ससि देक्खेसि देक्खसे, देवखेसे । ३. "देखइ देखेइ देक्खए, देखेए। १. हे० प्रा० व्या० ८।४।२३६ । २. हे० प्रा० व्या० ८।३।१५४-१५५ । ३. हे० प्रा० व्या० ८।३।१५८ । ४. देखिए पृ० १४० टिप्पण ७ । शौरसेनी रूप-२. देक्खशि, देखेशि, देवखशे, देखे । ३. देवखदि, देखेदि, देवखदे, देवखेदे । मगधी रूप-शौरसेनी की तरह समझ लें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy