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________________ — वै०प्र० ३|१|१२३ ॥ कर्तुः - तर्कः । -- निरुक्त पृ० १०१-१३ । ( १२१ ) नमसा - मनसा । - ऋग्वेद पृ० ४८६ म०सं० तङ्ककः-कङ्कतः । "तकतेर्गत्यर्थस्य वर्णव्यत्ययेन कङ्कत इति” वै० कर्तुम् - कर्तवे । - वै० प्र० ३ ४ ६ - ऋग्वेद पृ० ११०६ म० सं० । ३०. हेत्वर्थ कृदन्त के प्रत्यय में समानता :-- महाराष्ट्र - मरहट्ठ | वाराणसी - वाणारसी । - देखिए पृ० ८८ अक्षरों का व्यत्यय । वै०प्र० ३।४१९ सूत्र में 'से', 'सेन्' और 'असे' प्रत्ययों का विधान 'तुम्' के स्थान में किया गया है । Jain Education International प्रा० कत्तवे, कातवे, कस्तिए । गणेतुये, दक्खिताये नेतवे निघातवे एसे - देखिए पालिप्र० संकीर्णक ० कृ० पृ० २५८ । इस नियम से 'इ' धातु का 'एसे ' ( एतुम् ) रूप होगा । ३१. (क) क्रियापद के प्रत्ययों में समानता : वै० प्रा० अन्यपुरुष बहुवचन —— दुह् + रे = दुहे । अन्यपुरुष के बहुवचन में 'रे' और 'इरे' प्रत्यय का भी व्यवहार होता है | – वै०प्र० ७ ११८ । गच्छ गच्छ रे, गच्छिरे । — हे० प्रा० व्या० ८|३ | १४२ तथा पा० प्र० पृ० १७१ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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