________________
[
११ ]
न प्रकाशित करें ? मेरी बात को उन्होंने मानली और इस हिन्दी प्राकृतमार्गोपदेशिका का प्रस्तुत संस्करण प्राकृतभाषा के अभ्यासी सज्जनों के करकमलों में रखने का मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ ।
मेरा निवास अहमदाबाद में, पुस्तक के मुद्रण प्रवृत्ति का केन्द्र काशी । शुरू शुरू में तो दूसरे फारम से दो-चार फारम अहमदाबाद मगाये गये पर प्रूफ को जाने-आने में अधिक समय लगता रहा और कार्य में भी विलंब होने लगा । फिर तो काशी के पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान ( जैनाश्रम ) के कार्यकर्ता ( शोध - सहायक ) भाई कपिलदेव गिरेजी को इसके संशोधन का भार सौंपा गया सो उन्होंने बड़े परिश्रम से निबाहा । एतदर्थ वे भाई धन्यवाद के विशेष अधिकारी हैं । अनुवादिका श्रीसुव्रताजी भी धन्यवाद के योग्य हैं । और श्रीमृगावतीजी तथा भाई श्री सुन्दरलालजी का सहयोग न होता तो यह कार्य बन ही नहीं सकता अतः उन दोनों का भी नामस्मरण विशेष आभार के साथ कर रहा हूँ |
इस छोटी-सी पुस्तक की प्रस्तावना हमारे स्नेही मित्र गुणानुरागी डा० श्री सुनीति कुमार चटर्जी ( नेशनल प्रोफेसर - कलकत्ता ) ने हिन्दी में ही लिख देवे की महती कृपा की है। उनका आदरपूर्वक नामस्मरण करता हुआ इसके लिए उन्हें विशेष धन्यवाद देता हूँ ।
मेरे बड़े पुत्र डा० भाई प्रबोध पंडित का भी इस प्रस्तावना लिखवाने में बड़ा सहयोग रहा है अतः भाई प्रबोध का भी नामस्मरण करना आवश्यक समझता हूँ ।
Jain Education International
पालिप्रकाश का इसमें विशेष उपयोग किया गया है अतः उसके प्रणेता और मेरे मित्र स्व० श्री विधुशेखर भट्टाचार्यजी का अनुगृहीत हूँ ।
पुस्तक के अन्त में शब्दकोश तथा विशेष शब्दों की सूची भाई कपिलदेव गिरिजी ने तैयार कर दी है और इस सारे काम को उन्होंने बड़े प्रयत्न से पार पहुँचाया है अतः इनका नाम फिर-फिर स्मरण में आ रहा है ।
शुरू में शुद्धिपत्रक, अनुक्रमणिका तथा निर्दिष्ट संकेतों की सूची दे दी है।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org