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________________ Ixxii भूमिका विशुद्धि आदि गुण साधु के और दिग्विरति इत्यादि व्रत श्रावक के उत्तरगुण हैं । नवकार पोरसी, परिमुड्ड, एकासन, एकठाण, आयंबिल, अभत्त, अचित्त पानी आगार, चरिम, अभिग्रह तथा विकृति (विगय) - ये दस प्रत्याख्यान हैं, जो काल की मर्यादापूर्वक किये जाने के कारण कालिक प्रत्याख्यान कहलाते हैं। विधिपूर्वक ग्रहण, आगार, सामायिक, भेद, भोग, नियम-पालन और अनुबन्ध - ये सात द्वार हैं, जिनके आधार पर कालिक प्रत्याख्यान की विधि बतायी जाती है - १. ग्रहणद्वार - उचित गुरु के पास उचित अवसर पर विनय एवं उपयोग से गुरु द्वारा बोले गए पाठ को स्वयं बोलते हुए ग्रहण करना ग्रहणद्वार कहलाता है। २. आगारद्वार - आगार अर्थात् अपवाद या छूट । प्रत्याख्यान लेते समय अपवाद इसलिये रखे जाते हैं ताकि विशेष परिस्थितिवश भंग का दोष न लगे। आगारद्वार के अन्तर्गत कालिक प्रत्याख्यान में प्रत्येक के लिये अलग-अलग अपवादों का उल्लेख होता है। (क) नवकार - सूर्योदय होने के ४८ मिनट पश्चात् नवकार गिनकर पूर्ण हो जाने तक आहार का त्याग करना । सूर्योदय के बाद दो घड़ी पूर्ण होना और नवकार मंत्र गिनकर दोनों को ही ग्रहण किया जाता है तभी प्रत्याख्यान पूरा होता है। (ख) पोरिसी(पौरुषी)- पुरुष के शरीर के बराबर छाया जिस समय हो, वह काल पौरुषी कहलाता है, अर्थात् सूर्योदय के बाद दिन का एक-चौथाई भाग सम्पन्न हो जाने पर पुरुष की छाया उसके शरीर की लम्बाई के बराबर हो जाती है, उसी समय को ही पौरुषी या प्रहर कहते हैं । _(ग) परिमुड-अवड - सूर्योदय से दोपहर तक आहार का त्याग करना परिमुड्ड प्रत्याख्यान एवं सूर्योदय से तीन प्रहर तक आहार का त्याग अवड कहलाता है। (घ) एकासण-बियासण - एक ही स्थान पर बैठकर एक ही बार भोजन करना एकासन कहलाता है और एक ही आसन पर बैठकर दो बार भोजन करना बियासण है। (ङ) एकठाण - एक ही स्थान पर बैठकर भोजन करना एकठाण होता है । इसमें मुँह और हाथ के अतिरिक्त कोई अंग नहीं हिलता है एवं चौविहारी होता है। वहीं एकासन में दूसरे अंग हिलते हैं तथा वह तिविहारी भी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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