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________________ भूमिका Ixi में निबद्ध की थी। यद्यपि अनेक ग्रन्थों में इसका उल्लेख मिलता है, परन्तु इसकी आज तक कोई प्रति उपलब्ध नहीं हुई है। नाम साम्य के कारण अनेक बार हरिभद्रकृत इस प्राकृत कृति (सावयपण्णत्ति) को तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता उमास्वाति की रचना मान लिया जाता है, किन्तु यह एक भ्रान्ति ही है। पञ्चाशक की अभयदेवसूरि कृत वृत्ति में और लावण्यसूरि कृत द्रव्यसप्तति में इसे हरिभद्र की कृति माना गया है। इस कृति में सावग (श्रावक) शब्द का अर्थ, सम्यक्त्व का स्वरूप, नवतत्त्व, अष्टकर्म, श्रावक के १२ व्रत और श्रावक सामाचारी का विवेचन उपलब्ध होता है। इस पर स्वयं आचार्य हरिभद्र की दिग्प्रदा नाम की स्वोपज्ञ संस्कृत टीका भी है। इसमें अहिंसाणुव्रत और सामायिकव्रत की चर्चा करते हुए आचार्य ने अनेक महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर दिया है। टीका में जीव की नित्यानित्यता आदि दार्शनिक विषयों की भी गम्भीर चर्चा उपलब्ध होती है। जैन आचार सम्बन्धी ग्रन्थों में पञ्चवस्तुक तथा श्रावकप्रज्ञप्ति के अतिरिक्त अष्टकप्रकरण, षोडशकप्रकरण, विंशिकाएँ और पञ्चाशकप्रकरण भी आचार्य हरिभद्र की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं । अष्टकप्रकरण इस ग्रन्थ में ८-८ श्लोकों में रचित निम्नलिखित ३२ प्रकरण हैं - १. महादेवाष्टक, २. स्नानाष्टक, ३. पूजाष्टक, ४. अग्निकारिकाष्टक, ५. त्रिविधभिक्षाष्टक, ६. सर्वसम्पत्करिभिक्षाष्टक, ७. प्रच्छन्नभोजाष्टक, ८. प्रत्याख्यानाष्टक, ९. ज्ञानाष्टक, १०. वैराग्याष्टक, ११. तपाष्टक, १२. वादाष्टक, १३. धर्मवादाष्टक, १४. एकान्तनित्यवादखण्डनाष्टक, १५. एकान्तक्षणिकवादखण्डनाष्टक, १६. नित्यानित्यवादपक्षमंडनाष्टक, १७. मांसभक्षणदूषणाष्टक, १८. मांसभक्षणमतदूषणाष्टक, १९. मद्यपानदूषणाष्टक, २०. मैथुनदूषणाष्टक, २१. सूक्ष्मबुद्धिपरीक्षणाष्टक, २२. भावशुद्धिविचाराष्टक, २३. जिनमतमालिन्यनिषेधाष्टक, २४. पुण्यानुबन्धिपुण्याष्टक, २५. पुण्यानुबन्धिपुण्यफलाष्टक, २६. तीर्थकृतदानाष्टक, २७. दानशंकापरिहाराष्टक, २८. राज्यादिदानदोषपरिहाराष्टक, २९. सामायिकाष्टक, ३०. केवलज्ञानाष्टक, ३१. तीर्थंकरदेशनाष्टक, ३२. मोक्षस्वरूपाष्टक । धूर्ताख्यान यह एक व्यंग्यप्रधान रचना है। इसमें वैदिक पुराणों में वर्णित असम्भव और अविश्वसनीय बातों का प्रत्याख्यान पाँच धूर्तों की कथाओं के द्वारा किया गया है । लाक्षणिक शैली की यह अद्वितीय रचना है। रामायण, महाभारत और पुराणों में पाई जाने वाली कथाओं की अप्राकृतिक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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