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________________ १९ तपोविधि पञ्चाशक अट्ठारहवें पञ्चाशक में साधुप्रतिमा का वर्णन किया गया है। साधुप्रतिमा तप रूप है, इसलिए अब यहाँ तप के स्वरूप का वर्णन करने हेतु मङ्गलाचरण करते हैं - मङ्गलाचरण णमिऊण वद्धमाणं तवोवहाणं समासओ वोच्छं । सुत्तभणिएण विहिणा सपरेसिमणुग्गहट्ठाए ॥ १ ॥ नत्वा वर्द्धमानं तप उपधानं समासतो वक्ष्ये । सूत्रभणितेन विधिना स्वपरेषामनुग्रहार्थाय ।। १ ।। भगवान् महावीर स्वामी को नमस्कार करके अपने और दूसरे के उपकार हेतु आगमोक्त विधि के अनुसार तप का संक्षेप में वर्णन करूँगा ।। १ ।। बाह्य तप के भेद अणसणमूणोयरिया वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ।। २ ॥ अनशनमूनोदरिका वृत्तिसंक्षेपणं रसत्यागः । कायक्लेश: संलीनता च बाह्यस्तपो भवति ।। २ ।। बाह्य तप निम्न छह प्रकार के होते हैं - अनशन, ऊनोदरी, वृत्तिसंक्षेप, रसत्याग, कायक्लेश और संलीनता। १. अनशन – भोजन का त्याग करना अनशन है। इसके दो भेद हैं - यावत्कथिक और इत्वर। यावत्कथिक अर्थात् जीवनर्पन्त के लिए आहार त्याग के तीन भेद हैं - पादपोगमन, इंगितमरण और भक्त-प्रत्याख्यान। पादपोपगमन में परिस्पंदन (हलन-चलन आदि) और प्रतिकर्म (शरीर-सेवा) का तथा चारों आहारों का त्याग किया जाता है। इंगितमरण भी वैसा ही होता है, किन्तु इसमें निश्चित किये गये क्षेत्र में घूमने-फिरने की छूट होती है। भक्त-प्रत्याख्यान में परिस्पंदन अर्थात् घूमने आदि की छूट के साथ प्रतिकर्म अर्थात् सेवा कराने की भी छूट होती है। इसमें तीन या चार प्रकार के आहारों का त्याग होता है। उपवास से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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