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________________ पञ्चाशकप्रकरणम् पैर ऊपर रहें इस प्रकार सोये । लकड़ी की तरह लम्बा होकर सोये में से किसी एक स्थिति में रहकर उपसर्गों को सहन करे ।। १६ ।। ३२० दसवीं प्रतिमा का स्वरूप तच्चावि एरिसच्चिय णवरं ठाणं तु तस्स वीरासणमहवावि हु ठाएज्जा अंबखुज्जो तृतीयापि ईदृश्येव केवलं स्थानन्तु तस्य वीरासनमथवापि खलु तिष्ठेद् आम्रकुब्जो E गोदोही । एमेव अहोराई छुट्टं भत्तं अपाणगं वा' ।। १७ ।। गोदोही । तीसरी प्रतिमा भी प्रथम सप्तदिवसीय प्रतिमा जैसी ही है, किन्तु उसकी निम्न विशेषताएँ हैं गोदोहिका आसन से (गाय को दुहने के जैसे आसन से अर्थात् नीचे पैर का पंजा ही जमीन पर हो और उसका पीछे का भाग ऊपर रहे ) अथवा वीरासन (भूमि पर पैर रख सिंहासन पर बैठे हुए के समान विचलित हुए बिना स्थित रहना) से अथवा आम्रफल की तरह कुब्ज (टेढ़ा) बैठे। इन तीनों में से किसी एक स्थिति में रहे। इस प्रकार ये तीन प्रतिमाएँ इक्कीस दिन में पूरी होती हैं ।। १७ ।। ग्यारहवीं प्रतिमा का स्वरूप णवरं । गामणगराण बाहिं वाघारियपाणिए ठाणं ॥ १८ ॥ [ अष्टादश इन तीन वा ।। १७ ।। एवमेव अहोरात्रि की षष्ठं भक्तमपानकं केवलम् । ग्रामनगरेभ्यो बहिर्व्याघारितपाणिके स्थानम् ।। १८ ।। Jain Education International इसी प्रकार ग्यारहवीं प्रतिमा अहोरात्रि अर्थात् एक दिवसीय परिमाण वाली है। इसकी विशेषताएँ निम्न हैं. - For Private & Personal Use Only चौविहार छटुं का तप होता है (जिसमें छह समय के भोजन का त्याग होता है उसे छटुं कहा जाता है ।) इसमें दो उपवास होते हैं। दो उपवास में चार समय का भोजन तथा आगे और पीछे के दिनों में एकाशन करने से एक-एक समय का भोजन, इस प्रकार कुल छह समय के भोजन का त्याग होता है। इसमें ग्राम या नगर के बाहर हाथ लटका करके कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित रहे। यह प्रतिमा तीन दिनों तक चलती है, क्योंकि अहोरात्र के बाद छट्ट किया जाता है ।। १८ ।। १. 'उ' इति पाठान्तरम् । www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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