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अष्टादश ]
वाले को कितनी दत्ति लेने का नियम है।
४. पूर्वोक्त सात एषणाओं में से प्रथम दो के अतिरिक्त पाँच में से किसी एक एषणा से भोजन लें।
५. चिकनाई रहित आहार लें।
६. जिस आहार को भिखारी आदि भी न लेना चाहते हों उस आहार को लें। ७. एक ही मालिक के आहार को लें।
८. गर्भिणी, छोटे बच्चे वाली और धायमाँ (दूध पिलाने वाली) के हाथ का भोजन न लें ॥ ७ ॥
भिक्षुप्रतिमाकल्पविधि पञ्चाशक
९. एक पैर दरवाजे के बाहर और एक पैर दरवाजे के अन्दर रखकर भोजन दे तो लें।
१०. दिन में सुबह, दोपहर या शाम को भिक्षा के लिए निकलें।
११. छह गोचर भूमियों से गोचरी लें। जिस प्रकार गाय ऊँची-नीची घास को चरती फिरती है, उसी प्रकार साधु ऊँच-नीच घरों में भिक्षा के लिए फिरते हैं यही गोचर है। छह गोचरभूमियाँ निम्नवत् हैं गोमूत्रिका, पंतगवीथिका, शम्बूकवृत्ता और गत्वाप्रत्यागता ।
पेटा, अर्धपेटा,
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( क ) पेटा - • पेटी की तरह गाँव को चार भागों में विभक्त करके बीच के घरों को छोड़कर चारों दिशाओं में कल्पित चार पंक्तियों में ही गोचरी को
जाना।
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जाना।
( ख ) अर्धपेटा पेटा की तरह पंक्ति की कल्पना करके मात्र दो दिशाओं की दो पंक्तियों में जाना।
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हुए
(ग) गोमूत्रिका - चलते बैल के द्वारा पेशाब करने से जमीन पर जो आकृति बनती है, उसी प्रकार गोचरी करनी चाहिए । अर्थात् एक घर में जाने के बाद उसके सामने वाले घर में नहीं जाना चहिए, अपितु आगे बढ़कर दूसरी दिशा के घर में जाना चाहिए ।
(घ) पतंगवीथिका पतंग की तरह अनियमित क्रम से भिक्षा के लिए जाना ।
(ङ ) शम्बूकवृत्ता
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शंख की तरह गोलाकार में गोचरी के लिए
( च ) गत्वाप्रत्यागता
गोचरी लेकर दूसरी तरफ से वापिस आना ।
१२. जिस ग्रामादि में यह प्रतिमाधारी है, यह पता चल जाये वहाँ एक अहोरात्र रहना चाहिए। जहाँ पता न चले वहाँ दो अहोरात्र तक रह सकते हैं ।। ८ ।।
उपाश्रय से निकलकर एक तरफ के घरों में
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