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XXXVI
भूमिका
अपने धर्म-सम्प्रदाय में हो या अपने विरोधी के, उनकी समालोचना का विषय बने बिना नहीं रहता है। वे उदार हैं, किन्तु सत्याग्रही भी। वे समन्वयशील हैं, किन्तु समालोचक भी। वस्तुत: एक सत्य-द्रष्टा में ये दोनों तत्त्व स्वाभाविक रूप से ही उपस्थित होते हैं। जब वह सत्य की खोज करता है तो एक ओर सत्य को, चाहे फिर वह उसके अपने धर्म-सम्प्रदाय में हो या उसके प्रतिपक्षी में, वह सदाशयतापूर्वक उसे स्वीकार करता है, किन्तु दूसरी ओर असत्य को, चाहे फिर वह भी उसके अपने धर्मसम्प्रदाय में हो या उसके प्रतिपक्षी में, वह साहसपूर्वक उसे नकारता है। हरिभद्र के व्यक्तित्व का यही सत्याग्रही स्वरूप उनकी उदारता और क्रान्तिकारिता का उत्स है। पूर्व में मैने हरिभद्र के उदार और समन्वयशील पक्ष की विशेष रूप से चर्चा की थी, अब मैं उनकी क्रान्तिधर्मिता की चर्चा करना चाहूँगा। क्रान्तदर्शी हरिभद्र
हरिभद्र के धर्म-दर्शन के क्रान्तिकारी तत्त्व वैसे तो उनके सभी ग्रन्थों में कहीं न कहीं दिखाई देते हैं, फिर भी शास्त्रवार्तासमुच्चय, धूर्ताख्यान और सम्बोधप्रकरण में वे विशेषरूप से परिलक्षित होते हैं। जहाँ शास्त्रवार्तासमुच्चय और धूर्ताख्यान में वे दूसरों की कमियों को उजागर करते हैं वहीं सम्बोधप्रकरण में अपने पक्ष की समीक्षा करते हुए उसकी कमियों का भी निर्भीक रूप से चित्रण करते हैं।
हरिभद्र अपने युग के धर्म-सम्प्रदायों में उपस्थित अन्तर और बाह्य के द्वैत को उजागर करते हुए कहते हैं, "लोग धर्म-मार्ग की बातें करते हैं, किन्तु सभी तो उस धर्म-मार्ग से रहित हैं।"' मात्र बाहरी क्रियाकाण्ड धर्म नहीं है। धर्म तो वहाँ होता है जहाँ परमात्म-तत्त्व की गवेषणा हो। दूसरे शब्दों में, जहाँ आत्मानुभूति हो, 'स्व' को जानने और पाने का प्रयास हो। जहाँ परमात्म-तत्त्व को जानने और पाने का प्रयास नहीं है वहाँ धर्म-मार्ग नहीं है। वे कहते हैं - जिसमें परमात्म-तत्त्व की मार्गणा है, परमात्मा की खोज और प्राप्ति है, वही धर्म-मार्ग मुख्य-मार्ग है। आगे वे पुन: धर्म के मर्म को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं - जहाँ विषय-वासनाओं का त्याग हो; क्रोध, मान, माया और लोभरूपी कषायों से निवृत्ति हो; वही तो धर्म-मार्ग है। जिस धर्म-मार्ग या साधना-पथ में इसका अभाव है वह तो ( हरिभद्र १. मग्गो मग्गो लोए भणंति, सव्वे वि मग्गणा रहिया ।
- सम्बोधप्रकरण, १/४ पूर्वार्ध २. परमप्प मग्गणा जत्थ तम्मग्गो मुक्ख मग्गुति । वही, १/४ उत्तरार्ध
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