SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ पञ्चाशकप्रकरणम् [ त्रयोदश ५. संहृत - जिसमें पहले सचित्त वस्तु रखी गयी हो ऐसे बर्तन में रखकर साधु को आहार देना संहत दोष है। ६. दायक - भिक्षा देने के लिए अयोग्य बालक आदि भिक्षा दें तो दायक दोष लगता है। निम्नलिखित जीव भिक्षा देने के अयोग्य हैं - १. अव्यक्त (आठ वर्ष से कम उम्र वाला), २. अप्रभु (जो घर का सदस्य न हो), ३. स्थविर (अति वृद्ध), ४. नपुंसक, ५. मत्त (जो नशे में हो), ६. क्षिप्तचित्त (जो धनहानि के कारण पागल हो गया हो), ७. दीप्तचित्त (शत्रुओं से बार-बार हारकर निराश हो गया हो), ८. यक्षाविष्ट (जिसे कोई प्रेत सताता हो), ९. करछिन्न (जिसके हाथ कट गये हों), १०. चरणछिन्न (जिसके पैर कट गये हों), ११. अंधा, १२. निगडित (जिसके हाथ या पैर में जंजीर लगी हो), १३. कोढ़ी, १४. गर्भवती स्त्री, १५. बालवत्सा (छोटे बच्चे वाली स्त्री), १६-१८. अनाज आदि छानने वाली, पीसने वाली और भूनने वाली स्त्री, १९. सूत कातने वाली और २०. रूई पोने वाली। ७. उन्मिश्र - सचित्त बीज, कंद आदि मिश्रित आहार उन्मिश्र है। ८. अपरिणत - आहारादि पूर्णतया अचित्त न हुआ हो ऐसा आहारादि ग्रहण करना अपरिणत दोष है। ९. लिप्त - अखाद्य वस्तु लगा भोजन लेने से लिप्त दोष लगता है। १०. छर्दित -- आहारादि को नीचे बिखेरते हुए देना छर्दित दोष है ।। २७ - २९ ।। शुद्धपिण्ड परमार्थ से किसे होता है ? एयद्दोसविसुद्धो जतीण पिंडो जिणेहिऽणुण्णाओ । सेसकिरियाठियाणं एसो पुण तत्तओ णेओ ॥ ३० ॥ एतद्दोषविशुद्धो यतीनां पिण्डो जितैरनुज्ञातः ।। शेषक्रियास्थितानामेषः पुनः तत्त्वतो ज्ञेयः ।। ३० ॥ उक्त ब्यालीस दोषों से रहित शुद्ध आहार जिनेन्द्रदेवों ने साधुओं के लिए मान्य किया है। शुद्ध आहार परमार्थ से पिण्डविशुद्धि के अतिरिक्त भी अन्य क्रियाओं, जैसे - प्रतिलेखना, स्वाध्याय आदि में लीन रहने से ही होता है। प्रतिलेखनादि क्रियाओं से रहित मुनि यदि उक्त ब्यालीस दोषों का त्याग करे तो भी परमार्थ से शुद्धपिण्ड नहीं होता है, क्योंकि मूलगुणों के बिना उत्तरगुण व्यर्थ हैं ।। ३० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy