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________________ दशम ] उपासकप्रतिमाविधि पञ्चाशक १७१ अर्थात् जिसको प्रतिमा का वहन किये बिना ब्रह्मचर्य का पालन करना है वह छ: महीना ही नहीं, अपितु जीवन भर इस व्रत का पालन कर सकता है ।। २२ ।। . सातवीं सचित्तवर्जन प्रतिमा सच्चित्तं आहारं वज्जइ असणादियं णिरवसेसं । असणे चाउलउंबिगचणगादी सव्वहा सम्मं ।। २३ ।। सच्चित्तमाहारं वर्जयति अशनादिकं निरवशेषम् । अशने तन्दुलोम्बिकाचणकादि सर्वथा सम्यक् ।। २३ ।। सातवी प्रतिमाधारी श्रावक अशन आदि चारों प्रकार के सचित्त भोजन का त्याग करता है। वह अशन में चाँवल, गेहूँ, चना, तिल आदि का विशुद्धभाव से सम्पूर्णतया अपक्व, दुष्पक्व, तुच्छौषधि आदि का इस प्रकार त्याग करता है कि अतिचार न लगे ।। २३ ।। पाणे आउक्कायं सचित्तरससंजुअं तहऽण्णंपि। पंचुंबरिकक्कडिगाइयं च तह खाइमे सव्वं ।। २४ ।। पाने अप्कायां सचित्तरससंयुतं तथाऽन्यदपि । पञ्चोम्बरिकर्कटिकादिकं च तथा खादिमे सर्वम् ।। २४ ।। सातवीं प्रतिमा वाला श्रावक पेय आहार में सचित्त पानी या तुरन्त पड़े हुए सचित्त लवण आदि के रस से मिश्रित काँजी आदि के पानी का भी त्याग करता है और खादिम में त्रसकायिक जीवों से युक्त सभी प्रकार के पञ्चोदम्बर फलों जैसे – उदुम्बर, बरगद, प्लक्ष, काकोदुम्बर और पीपल तथा ककड़ी आदि का त्याग करता है ।। २४ ।। दंतवणं तंबोलं हरेडगादी य साइमे सेसं । सेसपयसमाउत्तो जा मासा सत्त विहिपुव्वं ।। २५ ।। दन्तधावनं ताम्बूलं हरीतक्यादि च स्वादिमे शेषम् । शेषपदसमायुक्तो यावन्मासान् सप्त विधिपूर्वम् ।। २५ ॥ (और वह) स्वादिम में दातून, पान (ताम्बूल), हरड़ आदि सभी प्रकार के स्वादिम का त्याग करता है। पूर्व की छ: प्रतिमाओं से युक्त श्रावक सात महीने तक विधिपूर्वक सभी प्रकार के स्वादिम का त्याग करता है ।। २५ ।।। आठवीं आरम्भवर्जन प्रतिमा का स्वरूप वज्जइ सयमारंभं सावज्जं कारवेइ पेसेहिं । पुव्वप्पओगओ च्चिय वित्तिणिमित्तं सिढिलभावो ।। २६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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