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________________ अबुधः सर्वकार्येषु, अज्ञात: सर्वकर्मसु। समयाचारहीनस्तु, पशुरेव स बालिशः।। अब कुछ पाश्चात्य विचारकों के विचार इस सम्बन्ध में जानने का प्रयत्न करेंगे। ग्रीक आचार्य अरस्तू मनुष्य की परिभाषा एक बौद्धिक (विचारशील) प्राणी के रूप में करते है (Man is a rational animal) अरस्तू की परिभाषा भारतीय विचारकों के अनुकूल होने के साथ ही तार्किक और स्वाभाविक भी है। इन सब तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध होता है कि मनुष्य चिन्तनशील प्राणी है। अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि मनुष्य के चिन्तन का विषय क्या है? स्वाभाविक रूप से चिन्तन के तीन रूप ही हो सकते हैं - १. वह स्वयं क्या है? २. यह दृश्य जगत् क्या है और इसका सार-तत्त्व क्या है? ३. व्यक्ति और जगत् का क्या सम्बन्ध है या होना चाहिए? पहले दो विषय तत्त्वज्ञान से सम्बन्धित हैं और तीसरा नीतिशास्त्र से। मनुष्य के आचार नियम इसी आधार पर निश्चित किये जाते हैं। यदि मनुष्य के लिए नैतिक मर्यादाएँ ही मान्य न की जाएँ तो हमारा यह मानना कि मनुष्य विवेकशील प्राणी है, कोई अर्थ नहीं रखता और मनुष्य तथा पशु में कोई अन्तर भी नहीं रह जाता। नैतिक नियम मानव जाति के सहस्रों वर्षों के चिन्तन और मनन के परिणाम हैं। उनको मानने से इनकार करने का अर्थ होगा कि मनुष्य जाति को उसकी ज्ञानक्षमता से विलग कर पशु जाति की श्रेणी में मिला देना। स्वाभाविक नियम तो पशु जाति में भी होते हैं। उनके आचार और व्यवहार उन्हीं नियमों से शासित होते हैं। वे आहार की मात्रा, रक्षा के उपाय आदि का निश्चय इन स्वाभाविक नियमों के सहारे करते है लेकिन मनुष्य की विशिष्टता इसी में है कि वह स्वचिन्तन के आधार पर हिताहित का ध्यान रख ऐसी मर्यादाएँ निश्चित करें जिससे वह अपने परम साध्य को प्राप्त कर सकें। काण्ट ने कहा है कि “अन्य पदार्थ नियम के अधीन चलते हैं। मनुष्य नियम के प्रत्यय के अधीन भी चल सकता है। अन्य शब्दों में, उसके लिए आदर्श बनाना और उन पर चलना संभव है।'२ मनुष्य अपने को पूर्ण रूप से प्रकृति पर आश्रित नहीं रखता है। वह प्रकृति के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन नहीं करता। आज तक का मानव-जाति का इतिहास यह १. सुभाषित संग्रह, पृ. ९१। २. पश्चिमी दर्शन, पृ. १६४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001699
Book TitleDharma ka Marm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size8 MB
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