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मिच्छादिटिणा संमत्त उव्यलिय पच्छा संत्तावीससंतकम्मिगोसम्मामिच्छत्तं गतो ते पडुच" (कर्मप्रकृतिचूर्णि सत्ताधिकार पृ० ३५)
तात्पर्य ओ छे के सम्यक्त्वमोहनीयनी उद्वलना थई जाय अटले मिथ्या दृष्टिने मोहनीय कर्मन २७ प्रकृतिर्नु सत्तास्थान प्राप्त थाय छे अने आ रीते समकिन मोहनीयनी उबलना कर्या वाद मिश्रगुणस्थानके जीव जई शके छे. तेवा जीवने त्यां अटले के मिश्रगुणस्थाके मोहनीयकर्मनु२७ प्रकृतिनुं सत्तास्थान होय छे, आम कर्मप्रकृतिपूर्णिकारनी मान्यता छे, ज्यारे कषायप्राभृतचर्णिकारनी मान्यतानुसार प्रथमगुणस्थानके समकितमोहनीयनी उबलना कर्या बाद २७ प्रकृतिनी मोहनीयनी सत्तावाको जीव त्यांथी त्रीजा गुणस्थानके जई शकतो नथी, माटे मोहनी पर्नु सत्तावीस प्रकृतिर्नु सत्तास्थान त्रीजा गुणस्थानके होई शक नथी।।
(२) संज्वलन क्रोधादिनो जघन्य प्रदेशसंक्रम कर्मप्रकृतिचर्णिकारना मते चरमसमयप्रबद्धनो अन्यत्र संक्रम करता क्षपकने चरमसमये सर्व संक्रमथी होय छे. ज्यारे कषायप्राभृतचणि. कारना मते उपशामकने चरमसमयप्रवद्धनी उपशमना पूर्ण थवाना काले होय छे. जुओ बन्नेना पाठो
पुरिसके हमाणमायासंजलणाणं 'घोलमाणेणं' ति जहण्णजोगिणा चरिमबद्धस्स खवरगाए प्रभु. ट्टियस्स अप्पपणो चरिमसमयबद्धस्स 'सगतिमे' त्ति अअपणो चरिमसमए छोभे सवसंकमेणं जहएणतो पदेससंकमो होतित्ति । कहं ? भण्णइ-एतेसिं चतुण्डं बंधवोच्छेयकाले दुआवलियबद्धलतं मोत्तूण भण्णं णत्थि पदेसरग। तं च समर समए खीयमाणं अंतिम समर आइमसमयबद्धस्स असंखेजतिभागो सेसो भवति तेण चरिमसमए जहणतो पदेससंकमो होइ । (कमप्रकृति चणि-संक्रमकरण प० १३३) __कोहसंजलणस्स जहण्णओ पदेससंकमो कल्स ? उवसामयल्स चरिमसमयपबहो जावे उबसामिजमाणो उवसंतो ताचे तस्स कोहसंजलणस जहण्णओ पदेससंकमो। एवं माणमायासंजलणपुरिसवेदाणं ( कषायप्राभृतचूणि पृ० ४०८)
(३) प्रथमउपशमसम्यक्त्वनी प्राप्तिना समये मिथ्यात्वमोहनीयना त्रण पुंज थाय छे, तेथी २६ नी सत्ता २८ नी सत्ता थाय छे, अर्थात् समतिमोहनीय अने मिश्रमोहनीय सत्तामां वधे छे, त्यार पछी नवा थयेला मिश्रमोहनीयनो अंक आपलिका सुधी (सम्यक्त्व मोहनीयमां)संक्रम थतो नथी, मेवी कर्मप्रकृतिचर्णिकारनी मान्यता छे.ज्यारे मिश्रमोहनीयनी सत्तामा उत्पत्तिना बीना समयथी ज तेनो सम्यक्त्वमोहनीयमा संक्रम थाय छे, अपी कषायप्राभूतचूर्णिकारनी मान्यता छे. कर्मप्रकृतिचूर्णिकार अक स्वतंत्र प्रकृति तरीके उत्पन्न थवाना कारणे मिश्रमोहनीयनी अक आवलिकानु वर्जन करे छे, ज्यारे कषायप्राभतचूर्णिकार मिश्रमोहनीप मंदरसबाळा मिथ्यात्वमोहनीयना ज पुद्गलरूप होघाना कारणे आवलिकानुवर्जन करता नथी, आ चन्ने मतो नीचेना बन्नेना पाठो पाथी जणाय छे
"उरसमसम्मदिहिस्स वा अट्ठावीससंतकम्मसियस्स सम्मत्तलंभातो आवलियार परतो वट्टमाणस्स
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