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प्रस्तावना तद्दन अज्ञात जेवा होय ते पण मानी शकाय तेवु नथी, वळी इन्द्रनन्दिए तावतारमा यतिपृषभाचार्यनी चणि अने जयधवला टीका वच्चे कषायप्राभृत उपर अनेक टीकाओनी रचनाओ आंतरेआंतरे थयानो उल्लेख को छे. चर्णिकार यतिवषम वीर संवत १००० पछी थयानी मान्यताना हिसाबे आ बधी टीकाओनी रचना अटला कालमां थयानी संगति लगभग दुःशक्य जेवी लागे छे. आम आटलां स्पष्ट प्रमाणो होवा छतां त्रिलोकप्रज्ञप्तिना अते रहेली वे गाथाओमांथी प्रथमगाथाना मात्र 'जइवसह' पद अने 'चुण्णिम्सरूवत्थकरणरूवपमाणं' वगेरे बीजी गाथा परथी कल्पित अर्थ करीने त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता तरीके यतिवषभाचार्यने मानी लई, मूळ पायोज खोटो नक्की करी, ते ज यतिवृषभाचार्यने कषायप्राभूतचूर्णिना कर्ता तरीके मानी, कयायप्राभृतचर्णिनी रचना वीरसंवत १००० पर्छीनी मानवानो अने चर्णिकारने त्रिलोकप्रज्ञप्तिना पण कर्ता तरीके नक्की करवानो जे प्रयास थयो छे ते समुचित प्रमाणोना अभावे सफल थतो नथी.
टूकमां अमारा आ बधा लखाणनो सार अछे के कषायप्राभृतचूर्णिनी रचना आर्यनागहस्तीना कालनी आसपास अथवा त्यार पछी थोडा ज काले थई होवानो विशेषे करीने संभव छे अने तेथी ते वीरनिर्वाणथी ५ मा के ६ट्ठा सैकानी जणाय छे. दिगंबरमतोत्पत्ति वीर संवत ६०० पछी छे, अटले प्रस्तुत कषायप्राभृतमूल तथा चर्णिमूत्रनी रचना दिगंबरमतोत्पत्ति पूर्वे थई होवाथी बन्न परंपरा आ ग्रन्थ ने मान्य कर्यो होय अम बनवा संभव छे.. ___अहीं कदाच कोईने शंका थाय के कपायप्राभृत उपर आटली वधी दिगम्बगवार्य कृत टीकाओनो उल्लेख छे, तो श्वेताम्बराचार्यनी कोई टीका उपलब्ध केम थती नथी ? अथवा रचायानो उल्लेख पण केम नथी ? अनु समाधान ओ छे के कोईक गुप्त स्थळे भंडा. रोमां श्वेताम्बरटीकाओ पडी होय तो पण शुकही शकाय ? अथवा विच्छेद गई होय अम पण केम न चने ? दिगम्बराचार्योनी पण जयधवला सिवाय सघळी टीकाओमांथी आजे क्या अंक पण टीका उपलब्ध थाय छे ? वळी मुसलमान राज्य दरमियान गुजरात-सौराष्टमां अनेक ज्ञानभंडारोनो नाश थयो छे, ज्ञानभंडारो उपर उपद्रवो आव्या छे, ज्यारे दक्षिणमां तेवा उपद्रवो ओछा आव्या छे, तेथी त्यां ग्रन्थोनी रक्षा थई होय तेमज आ बावतमा विशेष प्रबल कारण तो अमने ओ लागे छे के, कषायप्राभतमूल तथा चूर्णि अमुक काले दक्षिण तरफ चाल्या गया होवानो विशेष करीने संभव छे अने दक्षिण तरफ कालबळे श्वेताम्बराचार्योनो विहार धीमे धीमे ओछो थई गयो अने उत्तर तरफ रहेला आचार्योने तेनी प्राप्ति न थई होवाना कारणे वचगाळामां थयेला श्वेताम्बर आचार्यों द्वारा करायप्राभूत उपर टीकानी रचनाओ थई न होय, गमे तेम होय पण आ रीते दक्षिणना दिगम्बर ज्ञानभंडारोमां कषायप्राभत मूल तथा चूर्णि सुरक्षित रही शकी अने वर्तमानमां प्राप्त थई शकी छे ते बद्दल आपणे दिगम्बरज्ञानभंडारोनो आभार मानी.
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