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________________ 54 } प्रस्तावभा बताव्यो छे, जे त्रिलोकप्रज्ञप्तिनी रचना धवला पछी होवानु विशेषे करीने जगावे छे. जो वर्तमान त्रिलोकप्रज्ञप्ति यतिवृषभाचार्यनी रचना होय अने ते धवलाकार सन्मुख उपस्थित होय तो धवलाकार के जेमने यतिवृषभाचार्य प्रत्ये खूब ज बहुमान छे, जेमनां वचनोने पोते जयधवलामां सूत्र तरीके जणावे छे अने जेमने जयधवलामां अनेकवार खूब बहुमानपूर्वक याद करे छे, तेमनो मत लेवानु छोडे ज केम ? आ उपरांत पंडित फूलचंदजीओ पण जैन सिद्धान्तभास्करमां त्रिलोकप्रज्ञप्तिनी रचना यतिवृषभनी नथी अने लगती अनेक दलीलो रजू करी छे, जेमांनी केटलीक नीचे मुजब छे(i) त्रिलोकप्रज्ञप्तिना प्रथम अधिकारमां मंगल आदि छ अधिकारोनु ं वर्णन छे, ते धत्रला टीकाना आदि मंगल साथे मळतु छे तेथी संभव छ के ते त्यांथी लीधुं होय. (ii) 'ज्ञानं प्रमाणमात्मादेः' इत्यादि श्लोक लघीयस्त्रयग्रन्थनो छे. जे प्राकृतरूपांतरे त्रिलोकप्रज्ञप्तिमा जोवा मळे छे. लघीयस्त्रयमां आ श्लोक ज्यां छे त्यांथी अलग करी देवामां आवे तो प्रकरण अधुरु रही जाय छे. ज्यारे त्रि प्र० मां आ श्लोक अलग करी देवामां आवे तो पण प्रकरण अक रूप ज रहे छे. धवलाकारे पण आ श्लोकने उद्धृत कर्यो छे. आ श्लोक त्रि०प्र० कारे लघीयस्त्रयमांथी न लेता धवलामांथी लीधो होवानु ं जणाय छ े, केम के धवलामां आ श्लोकनी साथे बीजो पण जे एक श्लोक उद्धृत छे, ते लोकने पण त्रिलोकप्रज्ञप्तिकारे प्राकृत रूपांतर साथै लीधो छ . धवला तथा त्रि० प्र०ना बन्न श्लोको आ प्रमाणे छे प्रमाण-नय-निक्षेपैर्योऽर्थो नाभिसमीक्ष्यते । युक्तं चायुक्तवद् भाति, तस्यायुक्त च युक्तवत् ॥ ज्ञानं प्रमाणमित्याहुरूपायो न्यास उच्यते । नयो ज्ञातुरभिप्रायो युक्तितोऽर्थपरिग्रहः ॥ (धवला भा० ३. पृ० १७) धवलान्तर्गत आवे गाथा प्राकृत रूपान्तरथी त्रिलोकप्रज्ञप्तिना प्रथम अधिकारमां श्लोक ८२८३ तरीके आ मुजब छे जो ण पमाणनयेहिं निक्खेवेणं निरक्खदे अत्यं । तस्साजुत्तं जुत्त जुत्तमजुत्तं च पडिहादि ॥ होदि पमाणं ओ विणादुस्स हिदयभावत्थो । णिक्खेओ वि उत्राओ जुत्तीए अत्यपडिगणं ॥ विशेषे करीने संभव से छे के धवला परथी आ बे गाथा रूपान्तरे त्रिलोकप्रज्ञप्तिमा लेवामां आवी होय, नहितर धवलाकार सन्मुख जो त्रिलोकप्रज्ञप्ति होत तो तेओने सीधी ज गाथा सूकवाने बदले संस्कृत रूपान्तर करीने लेवानी जरूर न पडत. (iii) त्रिलोकप्रज्ञप्ति अंतर्गत घणो गद्यभाग धवलान्तर्गतभागने मळतो छे. जयधवला, श्रुतावतार आदि ग्रन्थोमां पण क्यांय त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता तरीके यतिवृषभाचार्यनो उल्लेख मळतो नथी. जो वर्तमान त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता क० प्रा० चूर्णिसूत्रकार यतिवृष * यथार्थतः धवलाकी सहायतासे ही तिलोयपन्नत्ति के मंगलविषयक पाठका संशोधन संभव हुआ है । ( ति० प० भा० १ प्रस्तावना. पृ० १८ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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