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प्रस्तावना
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जयवलाना संपादको प्रस्तुत प्रमाणोथी यतिवृषभ पूर्वे कुन्दकुन्दाचार्यने मानवा पड़े छो, ज्यारे श्रुतावतारना उल्लेखथी यतिवृषभ पछी कुन्दकुन्दाचार्य आवे छ, आम बन्न े रीते मुश्केली ऊभी थाय छ े, आ मुश्केलीनु कारण त्रिलोकप्रज्ञप्तिना रचयिता तरीके क० प्रा० चूर्णिना कर्त्ता यतिवृषभनी मान्यता छे, माटे आनु खरु निवारण ओछ े के कायप्राभृतचूर्णिमूत्रना कर्ता पछी कुन्दकुन्दाचार्य छे अने त्रिलोकप्रज्ञप्तिना रचयितानी पूर्वे छे. आ रीतना समाधानथी बन मुश्केलीओ दूर थई जाय छ े. हा, पण ओक मुश्केली ऊभी थाय छे अने ते ओ के कषायप्राभृतचूर्णितेमना कल्पित दिगंबराचार्यनी कृति तरीके रही शकती नथी.
(४) धवला ने त्रिलोकप्रज्ञप्ति बन्नेमां शकराजाना काल बावत मान्यता जुदी जुदी छे, त्रिलोकप्रज्ञप्तिमां वीर संवत ४६१ वर्ष पछी, मतांतरे ९७८५ वर्ष ५ मास पछी, अथवा १४७९३ वर्ष पछी अथवा ६०५ वर्ष ५ मास पछी शकराजानी उत्पत्ति बतावी छे
"बीरजिणे सिद्धिगदे च सदसिट्ठिवासपरिमाणे । कालम्मि अदिक्कते उप्पण्णो एत्थ सकराओ || १४९६ ।। अवा वीरे सिद्धे सहरसणवकम्मि सगसयन्भहिए। पणसीदिग्मि यतीदे पणमासे सकणिओ जादो ॥। १४९७ ॥ चोदससहस्ससगसयतेणउदीत्रासकाल विच्छेदे । वीरेसरसिद्धीदो उप्पण्णो सगणिओ अहवा || १४९८|| मित्राणे वीरजिणे छत्राससदेसु पंचवरिसेसु । पणमासेसु गदेसु संजादो सगणिओ अहवा || १४९९ ।। (तिलोयपण्णत्ति भाग १ पृ० ३४०)
ज्यारे लामां वेदनाखंडमां शकराजानी उत्पत्ति ६०५ व ५ मास पछी, मतान्तरे १४७९३ वर्ष पछी, अथवा ७९९५ वर्ष ५ मास पछी बतावी छे. अटलु ज नहीं त्रणे मान्यतानी साक्षी गाथाओ पण 'वुत्तं च' कहनेघवलामां मूकी छे
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पुणो एत्थ (६८३) सत्तमासाहियसत्तहत्तरिवासेसु अवणिदेसु पंचमा साहियपंचुत्तरछस्सद्वासाणि हवंति । एसो वीरजिणिदणिवाणनददिवसादो जाव सगकालस्स आदी होदि तावदियकालो । कुदो ? | ६ | एहि काले सगणरिंदकालम्मि पक्खित्ते वड्ढमाणजिणणिव्वुदकालागमणादो | वृत्तं च-पंच या मासा पंच य बासा छच्चेव होंति बाससया । सगकालेण य सहिया थावेयव्त्रो तदो रासी' ॥४१॥ अणे केवि आइरिया चोदस सहस्स- सत्तसदतिणउदिवासेसु जिणणिव्वाणदिणादो अइकतेसु सगणरिंदुपति भणति (१४७९३) वृत्तं च
"गुत्तिपयत्थ-भयाइँ चोदसरयणाइ समइकंताई । परिणिव्वुदे जिणिंदे तो रज्जं सगणरिंदस्स || ४२ ॥ आइरिया एवं भणति । तं जहा सत्तसहस्स-णवसयपंचाणउदिवरिसेषु पंचमासाहिएसु वड्ढमाणजिणणिव्वुद्दिणादो अइकंतेसु सगणरिंदरज्जुप्पत्ती जादो त्ति एत्थ गाड़ासत्तसहस्सा णत्रसद पंचाणउदी सपंचमासा य । अइकंता वासाणं जइया तइखा सगुप्पत्ती ॥४३॥ (धवला भाग-९ पृ० १३१-१३३)
अहीं खास ध्यानमां लेवा जेवी से बात छे के त्रिलोकप्रज्ञप्तिनो मुख्य मत ४६१ वर्षवाळो धवलामां बताव्यो जनथी, ज्यारे धवलानो मुख्य मत ६०५ वर्ष ५ मासवाळो त्रिलोकप्रज्ञप्तिमां
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