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प्रस्तावना
[51 हारना सूत्रना आलंघनथी, पोते प्ररूपी छे, माटे धवलाकार “पयदगच्छसाहणहमम्हेहि परूविदा"अम कहे छे, ज्यारे त्रिलोकप्रज्ञप्तिमां बधु लखाण सरखु छे, मात्र ‘पयदगच्छसाहणट्टमेसा प्ररूपणा परूविदा' अटलुलख्यु छ, अर्थात् त्यां 'अम्हेहि' शब्द नथी. त्रिलोकप्रज्ञप्तिमा जो आ मान्यता पूर्वेथी चाली आवती होत तो धवलाकार आ आखी मान्यता त्रिलोकप्रज्ञप्तिना नामे लखत 'अम्हेहि परूबिदा' न लखत, केम के अमने तो अना प्रमाणनी खास आवश्यकता हती.
अहीं आपणने विशेष आश्चर्य लागे छ. के त्रिलोकप्रज्ञप्तिमा 'तिलोयपण्णत्तिसुत्ताणुसारी' पद मूक्यु छे. आ रीते त्रिलोकप्रज्ञप्तिमां त्रिलोकप्रज्ञप्तिनी साक्षी शी रीते आवी शके ? अथवा अम कहीए के प्राचीन त्रिलोकप्रज्ञप्तिसूत्रनी साक्षी होय तो आधी पण सिद्ध थाय छे के आ त्रिलोकप्रज्ञप्ति अर्वाचीन छे अने मूल प्राचीन त्रिलोकप्रज्ञप्ति जुदी हशे तेथी प्रस्तुत त्रिलोकप्रज्ञप्तिनी रचना धवलानी रचना थया पछीथी थई होवानु विशेष सुसंगत थाय छे अने तेना कर्ता कषायप्राभृतचूर्णिना कनो यतिवाम होई शकता नथी.
(२)धवलामां त्रिलोकप्रज्ञप्तिनी साक्षी आपवामां आवी छे ते वर्तमान त्रिलोकप्रज्ञप्तिमां मळती नथी. “दुगुण दुगुणो दुवग्गो णिरंतरो तिरियलोगो त्ति तिलोयपण्णत्तिसुत्तादो य णव्वदे" (धवला ३ पृ० ३६) प्रस्तुत पाठ उपलब्ध त्रि०प्र०मां शोधवा छतां जोवामां आवतो नथी, तेवी जरीते धवलामां 'वुत्तं च' कहीने साक्षी गाथाओ लखी छे. तेमांनां केटलांक स्थळे आवती गाथाओ त्रिलोकप्रज्ञप्तिमा अक्षरशः मळे छे, छतां अंक पण गाथा आगळ त्रिलोकप्रज्ञप्तिन नाम धवलामां जणाव्यु नथी, धवलामां पंचास्तिकायादिनी साक्षीओ केटलांक स्थाने ग्रन्थना नामपूर्वक आपी छे, जो उक्तगाथाओ यतिषभरचित होय अने धवलाकारे त्रिलोकप्रज्ञप्तिमांथी लीधी होय तो धवलाकार अकाद स्थले पण तेनो उल्लेख कर्या वगर रहेत नहीं.
(३) उपलब्ध त्रिलोकप्रज्ञप्तिमा घणी गाथाओ अबी छ के जे कुदकुंदाचार्यकृत समयसार पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, मूलाचार, भगवती आराधना, लोकविभाग वगेरे अन्य ग्रन्थोमां उपलब्ध थाय छे । अहीं प्रथम कुन्दकुन्दाचार्यकृत पंचास्तिकाय तथा समयसारनी गाथाओनो विचार करी. अ गाथाओ त्यांथी त्रिलोकप्रज्ञप्तिमा लेवामां आवी होवानुज वधारे शक्य देखाय छ, त्रिलोकप्रज्ञप्तिप्रस्तावनाकारे पोतानी प्रस्तावनामां गाथाओ रजू करीने आ वात सारी रीते सिद्ध करवानो प्रयत्न कयों छे. जुओ-त्रिलोकप्रज्ञप्ति भाग बीजो प्रस्तावना पृ० ३८. तेवी ज रीते प्रवचनसारनी गाथाओ पण त्रिलोकप्रज्ञप्तिमा छे अने आ बधा उपरथी संपादकोने यतिवृषभनी पूर्वे कुन्दकुन्दाचार्यने माना पड़े छे. जयधवलानी प्रस्तावनाना नीचेना उल्लेख परथी आ वात आपणने स्पष्ट समजाई जशे,--
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