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________________ [41 गुणधरधरसेनान्त्रयगुर्वोः पूर्वापरक्रमोऽस्माभिः । न ज्ञायते तदन्वयकथकागम मुनिजनाभावात् ॥ १५१ ॥ त्यारे श्वेताम्बरोनी अनेक पट्टावलिओ उपरांत नंदिसूत्र मूल, तेनी चूर्णि, टीकाओ, हिमत - थेरावली वगेरेमा आर्यमंगु, आर्यन गहस्ती तथा वाचकवंशनो उल्लेख उपलब्ध थाय छे, उपरांत बृहत्कल्प, उपदेशमाला आदि श्वेताम्बरपरंपरामान्य ग्रन्थोमां आर्यमंगुना नामनो उल्लेख अनेक स्थले छे, अटलु' ज नहि पण आर्य मंगुनु कांईक टू'कुं जीवनचरित्र पण ★ निशीथचूर्णिमां उपलब्ध थाय छे. जो के कल्पसूत्रनी पट्टावलिमां आर्यमंगुनु तथा आर्यनागहस्तीनुं नाम नथी आपण ते कारण ओ छे के कल्पसूत्रपट्टावलीमां श्रमण भगवान महावीरदेवनी पाटपरंपरामां आर्यमहागिरि तथा आर्यसुहस्ती बतान्या पछी आर्यमुहस्तीनी पाटपरंपरा बतावी छे, ज्यारे आर्यमंगु अने आर्यनागहस्ती आर्यमहागिरिनी पाटपरंपरामां थयेल छे. नंदिमूत्रनी पट्टावली आर्यमहागिरिनी पाटपरंपरानी छे, तेथी तेमां तेमनां नाम आवे छे. जुओ नंदिनी मलयगिरि म० नी टीका प्रस्तावना “तत्र सुहस्तिन आरभ्य सुस्थितसु प्रतिबद्धादिक्रमेणावलिका विनिर्गता सा यथा दशाश्रुतस्कन्धे तथै या न तयेाधिकारः, तस्यामावलिकायां प्रस्तुताध्ययनकारकस्य देववाचकस्याभावात् तत इह मद्दागिर्यावलिकयाधिकारः " ( नंदिसूत्र मलयगिरिटीका पृष्ठ ४९ ) • चळी आर्यमंगुनो के नागहस्तीनो काल जो के नंदिसूत्रनी पट्टावलिमां बताव्यो नथी, परंतु अन्यत्र पट्टावलिओमां आर्यमंगुनो काल वी० सं० ४६७ लगभगनो बतावेल छे. हिमवंतराव लिमां मंगु ने नागहस्तीना कालनो स्पष्ट निर्देश नथी पण आगळ पाछळना आचार्योंना कालनिर्देशना हिसावे आर्य मंगुनो ४६७ लगभगनो अनं नागहस्तीनो तेनी नजीनो काल जणाय छे. हिमवंतराव मां आचार्योंनो क्रम आ रीते बताव्यो छे अहीं इन्द्रनन्दि, गुणधर साथै धरसेननी पण वंशपरंपरा पोते जाणता नथी. प्रेम जणावे छे. धरसेनाचार्य पासेथी ज्ञानने प्राप्त करी भूतबलि भने पुष्पदन्ते षट्खंडागमनी रचना करी छे. आ षट्खंडागमना सूत्रो मां भवती स्त्रीने संयतादिगुणस्थानकोनी प्राप्ति भने ऋजुसूत्रनयनो द्रव्यार्थिक नयमां अन्तर्भावादिने लगती ताजता प्रस्तुत ग्रन्थ पण श्व ेताम्बराम्नायने वधु अनुकूल छे. पण आ प्रस्तावनामां ये प्रन्थने लगती विचारणा अप्रस्तुत होई अमे थे बाबतमां उल्लेख करता नथी. भेने लगतु अमे जे संशोधन कयुं छे ते पण अवसरे प्रकाशमां लाववानी भावना रास्त्रीओ छोभे. A ओ बृहत्कल्पभाग १ - पृ० ४४ ★ निशीथचूर्णि भा० २५० १२५, भा० ३ पृ० १५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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