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________________ प्रस्तावना [ 39 वीरसंवत ४६७ लगभगनो होई शके छ, केम के चूर्णिकार आर्यमंगुना शिष्य अने आर्यनागहस्तीना अंतेवासी छे. अहीं शिष्य अने अंतेवासी अम बे जुदा शब्दोनु रहस्य ओ होई शके के आर्यनागहस्तीनी निकटमां विशेष श्रुत भणवा माटे रहेनारा अने आर्यमंगुना शिष्य. गमे तेम होय पण यति. वृषभाचार्ये आर्यमंगु अने नागहस्ती बन्ने पासे कषायप्राभृतनो अभ्यास कर्यो छे अने त्यार पछी चर्णिसूत्रनी रचना करी छे, अटले संभव छे के आर्थनंगु अने नागहस्तीना काल दरमियान ज चर्णिमूत्रनी रचना थई होय, अथवा तेमना पछी नजीकना कालमां थई होय. दिगंबरमतोत्पत्तिनो काल वीर संवत ६०० पछी छे. अटले प्रस्तुत कषायप्राभृतमूल तथा चर्णिसूत्रनी रचना दिगंबरमतनी स्थापना पूर्वेनी छे अने तेथी प्रस्तुत बन्न ग्रन्थो बन्ने परंपराने मान्य बन्या होवानो संभव छे. पूर्वे पण आपणे जोई गया छीओ के पंचसंग्रह, सित्तरीचर्णि, शतकचर्णि आदिमां कवायप्राभूतने लगती वातो छ तेमज कर्मप्रकृतिनी भलामण कषायप्राभृतचूर्णिमां छे. आथी सूचित थाय छे के कषायप्राभत तथा तेनी चूर्णिने पंचसंग्रहकार, सप्ततिकार्णिकार, शतकचर्णिकार वगेरेए मान्य करी छे. कर्मप्रकृतिने कषायप्राभतचूर्णिकारे पण मान्य करी छे, ॲटले क० प्रा० चणि अतिप्राचीन तेमज प्रामाणिक ग्रन्थ छे. कषायप्राभूत चूर्णिनी रचनाना काल अंगे वर्तमान संपादकोनी मान्यता ___ कपायप्राभूतमूल तथा चूर्णिनी रचनाकालना आपणा अनुमानथी विरुद्ध जयधवलाकारना उल्लेख तथा त्रिलोकप्रज्ञप्तिनी बे गाथा उपरथी कषायप्राभतर्णि तथा जयधवलाना वर्तमान संपादको जे मान्यता ऊभी करी छे, तेनी पण आपणे थोडी समीक्षा करी लईओ. जयधवलाकारे प्रारम्भमां मंगलाचरणमां कषायप्राभृतमूलना कर्ता गुणधर तथा चूर्णिना कर्ता तरीके आर्यमंगु- आर्यनागहस्तीना शिष्य-अन्तेवासी यतिवृषभाचार्यना नामनो उल्लेख मात्र कर्यो छे, पाछळथी द्रव्यागमनी प्रमाणभूतता बतावता जयधवलाकार कषायप्राभतमूलनी रचना करनारने तेमज आर्यमंगु, आर्यनागहस्ती अने यतिवृषभाचायने वीर संवत ६८३ पछी घणा काळे थयेल बतावे छे. तेमना मत मुजब वीर संवत ६८३ वर्षे लोहाचार्यनो स्वर्गवास थयो अने तेनी साथे आचारांगनो पण विच्छेद थयो, त्यार पछी सर्व आचार्यों अंग तथा पूर्वना अकदेशना ज्ञानवाळा थया अने तेमनी परंपराथी अंग अने पूर्वना अक देशनुज्ञान गुणधराचायने मल्यु, तेमणे कालना प्रभावे ग्रन्थविच्छेदना भयथी 'ज्ञानप्रवाद' नामना पांचमा पूर्वनी दशमी वस्तुना त्रीजा पेजदोषपाहुउनो कषायमाभृतग्रन्थरूपे १८० गाथामां उपसंहार (संग्रह)कर्यो. ते पछी आचार्यपरंपराथी चाली आवती ते सूत्रगाथाओ आर्यमंगु अने आर्यनागहस्तीने प्राप्त थई अने ते बन्नेना पादमूलमा गुणधराचार्यना मुखमांथी निकळेली मे १८० गाथाओ ( कायप्राभृतमूल ) ने सम्यग् रीते सांभळी यतिवृषभभट्टारके चूर्णिसूत्रनी रचना करी. जपधवलानो आ संपूर्ण उल्लेख तेमना ज शब्दोमां रजू करी छीओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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