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________________ २५४ ] [ खवगसेढी Jain Education International यन्त्रकम्-१८ (चित्रम्-१८) द्वादशसंग्रहकिट्टीनां संक्रम्यमाणप्रदेशानाश्रित्य चित्रम् For Private & Personal Use Only - ०6०००० *44*xx * * * * * * * * * 1. किरा र संकि किस किस किसिफिरिः संकि संकी: मिशि: संग्रा- हिर सं ज्वलन लो सं व ल न मा या सं य ल न मा नः सं व ल न क्रोधः संकेतस्पष्टीकरण अनेन चिह्न न विवक्षितसंग्रहकिट्टितो ऽनन्तरसंग्रहकिट्टौदलं संक्रामतीति सूचितम् ( गाथा १२६ ) ०००० अनेन चिह्नन प्रथमसंग्रहकिट्टितो तृतीयसंग्रहकिट्टी दलं संक्रामतीति सूचितम् , तथा मायाद्वितीयसंग्रह किट्टितो लोभप्रथमसंग्रह कि दृयामपि संक्रम्यमाणदलमनेनैव चिह्न न सूचितम् । (गाथा-१२६॥ * अनेन चिह्नन प्रथमसंग्रहकिट्टितो.ऽनन्तरकषायप्रथमसंग्रह किट्टौ दलं संक्रामतीति सूचितम् । (गाथा-१२६) - - - अनेन चिह्न न द्वितीयसंग्रहकिट्टितो-ऽनन्तरकषायप्रथमसंग्रहकिटौ दलं संक्रामतीति सूचितम् , तथा मायाप्रथमसंग्रह किट्टितो मायातृतीय संग्रहकिट्टावपि संक्रम्यमाणदलमनेनैव चिह्नन सूचितम् ।* www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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