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________________ ३४] सम्पादकीय भावानुवाद गुजराती भाषाना रसिक वाचको पण आ ग्रन्थनो सम्पूर्ण विषय संक्षेपथी सारी रीते समजी शके ते माटे गुजराती भाषामां मूलगाथाओनो भावानुवाद ग्रन्थनी पाछळ आपवामां आव्यो छ. कृतज्ञता दर्शन-- परमाराध्यपाद भवोदधितारक सिद्धान्तमहोदधि कृपावतार पूज्य आचार्यभगवंत श्रीमविजयप्रेमसूरीश्वरजीमहाराजाना उपकारोनी संख्या गणी शकाय अबी नथी. तेओश्री वांची शके, तेवा मोटा अक्षरोथी करावेली आ ग्रन्थनी प्रेसकोपीन वृद्धावस्था साथे नरम तबियतमां पण तेओश्री सूक्ष्मदृष्टिथी वांचन, संशोधन करी अक वधु महान उपकार कयों छे. मारा परमोपकारी स्याद्वादविशारद तपोनिधि प्रभावकप्रवचनकार परमगुरुदेव पू० पन्न्यास प्रवरश्री भानुविजयजी गणिवरश्रीओ तथा स्याद्वादविज्ञ पू० मुनिराजश्री जंबूविजयजी महाराजे पोताना अमूल्य समयनो भोग आपी'मोक्षस्वरूपविचार' नामना छेल्ला प्रकरणनी प्रेसकापीनु संशोधन करवा महान कृपा करी छे. आ प्रकरणमां पूज्य मुनिराजश्रो गुणानन्दविजयजी महाराजे पण अविस्मरणीय सहाय करी छे. पदार्थसंग्रहकार मुनिवरो पू० श्री जयघोषविजय म० तथा पूज्य श्री धर्मानंदविजय महाराजे प्रेसकोपीनु तथा प्रफोनु संशोधन काळजीपूर्वक करीने अपूर्व सहायकरी छे. पदार्थसंग्रहकार पू० मुनिराजश्री हेमचन्द्रविजय महाराजे प्रेसकोपीना संशोधनमां तथा परिशिष्टो बनाववामां घणो सहयोग आप्यो छे. आगमप्रभाकर पू० मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराजे प्राचीन हस्तलिखित कर्मप्रकृतिचूर्णिटीप्पन, शतकचूर्णिटोप्पन,संशोधित आवश्यकचूर्णि वगेरे ग्रन्थो वांचनमाटे आपी उदार सौजन्य दाखव्यु छे. तेओश्रीओ आपेला आ ग्रन्थो प्रस्तुत ग्रन्थनां लेखन अने सम्पादनमा घणा सहायक थया छे. पूज्य मुनिराजश्री मित्रानंदविजयजी महाराजे परिशिष्ट-प्रस्तावनादिना प्रफसंशोधनादिमां अने भावानुवादना व्यवस्थितसंकलनमा आत्मीयभावे घणी अगत्यनी सहाय करी छ. ____ जेओश्रीना पावनपगले संयमना मार्गे में प्रयाण आदयु ते मारा संसारपक्षे वडिलबन्धु अने मारा परम उपकारी गुरुदेव तपस्विरत्न मुनिपुगवश्री जितेन्द्रविजयजी महाराजश्रीना अमेय उपकारोने वर्णववा मारी पासे शब्दो नथी. ते पूजनीय गुरुदेवे पूज्य आचार्य भगवंतने मने व्याकरण कराववानी विनंति करी हती. तेना परिणामे हुव्याकरणनो बोध पाम्यो अने आ ग्रन्थ लखवा समर्थ बन्यो. तेओश्रीना चरणोमां अनंतशः वंदना करी कंईक कृतार्थता अनुभवुछु. सुश्रावक पंडित धोरजलाल डाह्याभाई ३० फर्मा जेटली प्रेसकोपीन संशोधन करी अनुमोदनीय श्रुतभक्ति करी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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