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________________ ४७६ ज्ञानार्णवः [२६.१०४1413 ) वरुणमहेन्द्रौ शस्तौ प्रश्ने गभस्य पुत्रदौ ज्ञेयौ । इतरौ स्त्रीजन्मकरौ शून्यं गर्भस्य नाशाय ॥१०४ 1414 ) नासाप्रवाहदिग्भागे गर्भार्थ यस्तु पृच्छति । पुरुषः पुरुषादेशं शून्यभागे तथाङ्गना ॥१०५ 1415 ) विज्ञेयः संमुखे षण्ढः शुष्मणायामुभौ शिशू । गर्भहानिस्तु संक्रान्तौ समे क्षेमं विनिर्दिशेत् ॥१०६ 1416 ) [ उक्तं च ईडा तोयमयी प्रोक्ता पिङ्गला वह्निरूपिणी । सुषुम्ना शंभुरूपेण शंभुहँसस्वरूपकः ॥१०६*१] 1413 ) वरुणमहेन्द्रौ-इतरौ वायुखाग्नितत्त्वौ स्त्रीजन्मकरौ। शून्यं गर्भस्य नाशाय । इति सूत्रार्थः ।।१०४।। अथ पुनः गर्भप्रश्नमाह। __1414 ) नासाप्रवाह-नासाप्रवाहदिग्भागे गर्भार्थं पृच्छति पुरुषः । पुरुषादेशम् । शून्यभागे तथा अङ्गना वक्तव्या । इति सूत्रार्थः ॥१०५।। अथ पुनर्गर्भप्रश्नमाह।। __1415 ) विज्ञेयः-सन्मुखे स्वरे षण्ढो विज्ञेयः । शुष्मणायामुभौ शिशू । शुष्मणायां सत्याम् उभौ द्वौ शिशू बालकौ । संक्रान्तौ सूर्याच्चन्द्रे चन्द्रात् सूर्ये । तु पुनरर्थे । गर्भहानिः। समे द्वयोः समावस्थायां क्षेमं कल्याणं विनिदिशेत् । इति सूत्रार्थः ।।१०६।। [ ईडादीनां ग्रन्थान्तरोक्तं स्वरूपमाह। __1416 ) ईडा तोयमयी-तोयमयी जलरूपिणी। सुषुम्ना नाडी शंभुरूपेण शिवरूपेण स्थिता । इति सूत्रार्थः ॥१०६-१॥] गर्भविषयक प्रश्नमें वरुण और पुरन्दर मण्डलोंको शुभ व पुत्रके देनेवाले तथा शेष पवन और आग्नेय मण्डलोंको पुत्रीजन्मके सूचक जानना चाहिए । शून्य (आकाश मण्डल) गर्भका नाशक होता है ।।१०४॥ ____ जिस नासिकाछिद्रसे वायु बह रहा हो उस दिशाभागमें स्थित होकर जो पुरुष गर्भके विषयमें पूछता है उसके लिए पुत्रोत्पत्तिकी तथा शून्यभागमें-खाली नासिकाछिद्रकी ओर स्थित रहकर प्रश्न करनेपर-पुत्रीकी उत्पत्तिकी सूचना करना चाहिए ॥१०५॥ सामने स्थित रहकर प्रश्न पछनेपर नपुंका जन्म जानना चाहिए, सुषुम्ना नाडीकी ओर स्थित रहकर प्रश्न करनेपर दो बालकोंकी उत्पत्तिकी सूचना करना चाहिए। संक्रान्तिमें-मण्डलकी परिवर्तित अवस्थामें प्रश्न करनेपर-गर्भके नाश तथा सम अवस्थामें कुशलका निर्देश करना चाहिए ।।१०६।। कहा भी है-ईडानाडी जलमय, पिङ्गला अग्निमय, सुषुम्ना शंभुमय कही है। और शंभु हंसरूप माना है ॥१०६* १।। १. All others except P S सुषुम्नाया', S सुष्मनाया। २. Only in N | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org' |
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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