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________________ ४७२ ज्ञानार्णवः [२६.९१1398 ) पूर्णा' वरुणे प्रविशति यदि वामा जायते क्वचित्पुण्यैः । सिध्यत्यचिन्तितान्यपि कार्याण्यारभ्यमाणानि ।।९१ 1399 ) जयजीवितलाभाद्या ये ऽर्थाः पूर्व तु सूचिताः शास्त्रे । स्युस्ते सर्वे ऽप्यफला मृत्युस्थे मरुति लोकानाम् ।।९२ 1400 ) अनिलमवबुध्य सम्यक्पुष्पं हस्तात्प्रपातयेज्ज्ञानी । मृतजीवितविज्ञाने ततः स्वयं निश्चयं कुरुते ॥९३ 1401 ) वरुणे त्वरितो लाभश्चिरेण भौमे तदर्थिने वाच्यम् । तुच्छतरः पवनाख्ये सिद्धो ऽपि विनश्यते वह्नौ ॥९४ 1398 ) पूर्णा वरुणे-वरुणे पूतत्वे पूर्णा यदि वामा प्रदिशति । शेषं सुगमम्। इति सूत्रार्थः ॥९१॥ अथ पुर्विशेषमाह। 1399 ) जयजीवित-दक्षिणनाडीविशेष मण्डलान्तरे वा। शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ।।९२।। अथ ज्ञानिनः स्वरूपमाह । ___1400 ) अनिलम्-अनिलं दक्षिणवामस्वरमवगम्य ज्ञात्वा। शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥९३॥ अथ तत्त्वे फलाफलमाह । 1401 ) वरुणे-तथिने लाभार्थिने। शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥९४।। अथ तत्त्वानां फलाफलमाह। यदि कहीं पूर्व पुण्यके उदयसे वरुण मण्डलके प्रवेश करते हुए वामा नाडी पूर्ण बहती है तो जिनकी सिद्धिका कभी विचार भी नहीं किया गया था ऐसे भी कार्य प्रारम्भ किये जानेपर सिद्धिको प्राप्त होते हैं ॥९१॥ वरुण मण्डलके प्रवेश करते समय यदि वायु मृत्युस्थ है-दक्षिण नासिकामें स्थित है तो प्राणियोंके जिन जय, जीवन और लाभ आदि पदार्थोकी पहले शास्त्रमें सूचना की गयी है वे सब ही निष्फल होते हैं ॥९२।। जानकार मनुष्य भलीभाँति वायुको जानकर हाथसे पुष्पको गिरावे, तत्पश्चात् मृत्यु और जीवन सम्बन्धी विशिष्ट ज्ञानके विषयमें स्वयं ही निर्णय करे ।।१३।। प्रश्न करनेपर उत्तर देते समय यदि उत्तर देनेवालेके वरुण मण्डलका उदय है तो प्रार्थीके लिए शीघ्र ही लाभका निर्देश करना चाहिए। उस समय यदि पार्थिव मण्डलका उदय हो तो दीर्घ कालमें होनेवाले लाभका, यदि पवन नामक मण्डलका उदय हो तो अतिशय तुच्छ लाभका, तथा यदि अग्नि मण्डलका उदय हो तो सिद्ध हुए भी कार्यकी हानिका निर्देश करना चाहिए ॥१४॥ १. SKX Y R पूर्णे। २. N T सिद्धचन्त्य । ३. K ज्ञेयाः for येर्थाः । ४. X भूमौ for भौमे । ५. M N वाच्यः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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