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________________ -४२] २६. प्राणायामः 1340 ) रत्नाकर इवागाधः सुराद्रिरिव निश्चलः । प्रशान्तविश्वविस्पन्दः प्रनष्टसकलभ्रमः ॥३९ 1341 ) किमयं लोष्टनिष्पन्नः किं वा पुस्तप्रकल्पितः । समीपस्थैरपि प्रायः प्राजानीति लक्ष्यते ॥४०॥ आसनंजयः ।। 1342 ) सुनिर्णीतस्वसिद्धान्तः प्राणायामः प्रशस्यते । मुनिभिानसिद्धयर्थ स्थैर्यार्थं चान्तरात्मनः ॥४१ 1343 ) अतः साक्षात स विज्ञेयः पूर्वमेव मनीषिभिः। मनागप्यन्यथा शक्यो न कर्तुं चित्तनिर्जयः ॥४२ _____1340 ) रत्नाकरः-उपशमितविश्वविस्पन्दः उपशमितजगद्दाहः सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥३९।। अथ ध्यानलक्षणमाह। 134-1 ) किमयं-प्राज्ञैः पण्डितैः ध्यानी इति लक्ष्यते । समीपस्थैरपि । शेषं सुगमम् । इति सुत्रार्थः ।।४०|| अथ प्राणायाममाह। _1342 ) सुनिर्णीत-प्राणायामः प्रशस्यते मुनिभिः । अन्तरात्मनः शुद्धयर्थम् ।* शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ।।४१।। अथैतस्य विस्तरत्वमाह । 134:3 ) अतः साक्षात्-कर्तुं न शक्यः । इति सूत्रार्थः ॥४२।। अथ ध्यानान्तरमाह । ( शनि आदि ) ज्ञान रूप मन्त्रके द्वारा नष्ट किये जा चुके हैं, जो समुद्र के समान गम्भीर व सुमेरु पर्वतके समान अडिग है, तथा जिसके समस्त संकल्प-विकल्प शान्ति व भ्रान्ति नष्ट हो चुकी है; उस ध्यानावस्थित योगीको देखकर समीपमें स्थित विद्वान् 'क्या यह पाषाणसे निर्मित है, अथवा क्या लेप्यकर्म (मिट्टी, लकड़ी या वस्त्र ) से रचित है' ऐसा प्रायः विचार करते हैं ॥३८-४०॥आसनजयका कथन समाप्त हुआ। जिस प्राणायामके स्वरूपका निर्णय अपने (जैन ) आगमोंके द्वारा किया गया है उसकी मुनिजनों द्वारा ध्यानकी सिद्धि और अन्तःकरणकी स्थिरताके लिए प्रशंसा की जाती है ।।४।। इसलिए बुद्धिमान् मुनिजनोंको उसे पूर्व में ही प्रकट स्वरूपसे जान लेना चाहिए। कारण यह कि उसके बिना मनके ऊपर विजय नहीं प्राप्त की जा सकती है ॥४२॥ १. All others except PM विस्पन्दप्रणष्ट । २. S Y R end the chapter here; others add only आसनजयः । ३. LF KX Y अथ निर्णीतसि, N S T R सुनिर्णीतसु । ४. M N T X Y शद्धयर्थं चा। K मुख्यार्थश्चा। ५.Y अथ। ६. N मनीषिणा, L T F Y मनीषिणा। ७. L T F निग्रहः । ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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